Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 197
________________ :१८७ विशेष ॥ राग द्वेष करे नहि रे, रेहेवे निर्दूपण देख रे ॥ मु०॥ ८॥शय्या परिसह इग्यारमो रे, नव दुःख देवे टाल॥मोदनगर पोहोचाय दे, जठे सासतां सुख रसाल ॥ मु०॥९॥ इति॥ दुहा ॥ आक्रोश परिसह वारमो, सेवे शुद्ध प्रणगार ॥ मारे कूटे दुःख देवे, नहि धरे द्वेष लिगार ॥ १॥ अथ आक्रोश परिसह ॥१२॥ ढाल १२ मी ॥ आक्रोश परिसह बारमो रे हां, सेवे किसीविध साध ॥ मोहोटा मुनीसरु ॥ जंच नीच वचना करी रे हां, नहिं पावे मनि विखवाद ।। मोहोटा मुनीसरु ॥१॥ गोचरीमें फिरतां थकारे हां, बोले मुखशुं आम॥ मो०॥ आयो ने इहांकिहां रे हां, अठे नहि बे थारो काम ॥ मो० ॥२॥ साहामा भाचे सानज्युं रे हां, मुखशं बोले गाल ॥ मो० ॥ श्राव मति इ • हां सहि रे हां, डरपे महारा वाल ॥ मो०॥३॥ कोइक देवे ग़ालीया रेहां, कोइक देवे मार ॥ मो० ॥ कोइक लोक द्वेषी थकारे हां, कुत्ता देवे लगाय ॥ मो० ॥४॥ केता एक ऐसी केवेरे हां, नहि चाल्यो घररो मम ॥ मो० ॥ अनाज

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