Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
View full book text
________________
१९२
रखोए, सरब जाणे सारिखोए ॥५॥ प्रथम पन जिणंद, गेम दीयो घरफंद ॥ आइ नहि गोचरीए, वात नहि शोचरीए ॥ ६ ॥ वरस नि सरीयो एक, रह्यो समता नाव विशेक ॥ केव ल पामीयाए, मुक्ति सीधावीयाए ॥७॥ मुनि ढंढपनी वात, नहि मिले सुजतो नात ॥ मास
काढीया ए, कर्मदल वाढीयांए ॥८॥ इम सहे परिसह अणगार, पामे नवनोपार ॥ मो होटा महंत जतिए, साधवीया मोहोदी सतीए॥ ९॥ पूरी थइ पन्नरमी ढाल, साध नमुं तिण काल|श्रीजिन नाखीयोए, सूत्र में साखीयोए॥१०
दुहा ॥ रोग आपदा आया थकां, शेठो र हेवे मुनिराय॥ सावद्य ओषध वं नहि, इमना ख्यो जिनराय॥१॥अथ रोग परिसह॥१६॥
दाल १६ मी ॥सोलमो परिसह सांनलो रे, व्याप्यो शरीरमें रोगो रे ॥सम नावें रहे साधु जी, नहिंकरे मनमां शोगोरे॥ शोलमो परिसह एहवो ॥१॥ ए आंकणी ॥ आशाता उदय हुइ, नहि करे हेला ने शोरोरे ॥ विण नूगतें बूटे नहिं, किणरो न चाले जोरोरे॥शो० ॥२॥रो

Page Navigation
1 ... 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211