Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 186
________________ १७६ सारिखी, दाजे पग सुकमाल ॥दू ० ३॥ति ण वेला लागे तपा, कंठ तालवू शूक ॥ होते आवे फेफडी, मुखमेंनहिं थूक ॥ दू०॥४॥न गरीमें फिरता गोचरी, नहीामले नीर ।। सीदावे नहिं साधुजी, शेठा रहेवे सधीर॥दू ० ॥५॥ धन्ना मंत्री तणा पुत्रने, धोबो पाणी भराय॥ सिद्धां रे साहामं जोइने, दीधो संथारो ठाय ॥ दू ॥६॥ अंबमना शिष्य सातसो, तरषालागी पूर ॥ संथारो साथें कियो, हुवा साचेला शूर ॥ दू० ॥७॥ जघन्यमें बेलो कियो उत्क टाउ मास ॥ महावीरजी पाणीविना. कधी करमारो नाश.॥ दू०॥८॥ दूजो परिसह जी तिने. तिरिया जीव अनंत ॥ तिरिया ने तिर शी घणा, इम नाख्यो नगवंत ॥ दू०॥९॥ इति तृषा परिसह ॥ २॥ - दुहा ॥ शीयाले अति शी पडे, वाजे शीत ल वाय ॥ तिणवेला शुद्ध साधुजी, शेंठा रहेवे समनाव ॥१॥ ___ ढाल ३ जी ॥ सीतकालरे मांहि, सेवे सीत ने ॥ मन दृढ राखे आपणुं रे ॥१॥ठारी ठा

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