Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 172
________________ १६२ ॥शतेकिएन्याय ॥ हालेचालेबेइणन्याय ॥ ॥७८ हाथीघोडादीशतासंज्ञिकेअसंनि ॥ संजि तेकिणन्याय ॥ मनइणन्याय ॥ ७९ हाथीघो मासूक्ष्मकेबादर ॥ बादर तेकिणन्याय ॥ देखा यइणन्याय ॥ ८० हाथाघामात्रशकस्थावर ॥ त्रश तेकिणन्याय ॥हालेचालेइणन्याय ॥ ८१ नारकीसंज्ञिकेशसंज्ञि ॥ संज्ञि तेकिणन्याय ॥ मनइणन्याय ॥ ८२ नारकीसूक्ष्मकेबादर ॥ बादर तेकिणन्याय ॥ देखाय इणन्याय ॥ ८३ नारकीत्रा केस्थावर ॥ त्रश. तेकिणन्याय ॥ हालेचालेइणन्याय ॥८४ देवतासंज्ञिकेअसंज्ञि ॥ संज्ञि. तेकिणन्याय ॥ मनोहणन्याय ॥ ८५ देवतासमकेवादर ॥ बादर. तेकिणन्याय।। देखायबेइणन्याय ॥ ८६ देवतात्रशकेस्थावर ॥ श. तेकिणन्याय ॥ हालेचालेइणन्याय ॥ ८७ मनुष्यसंज्ञिकेअसांजे ॥ संज्ञि असंज्ञीदोय ते किणन्याय ॥ संजिनेमन. नेप्रसंज्ञिचौदेस्था नकीयाते. इणन्याय ॥ ८८ मनुष्यसूक्ष्मकेबाद र ॥ बादर. तेकिणन्याय ॥ देखाय इणन्याय ॥ ८९ मनुष्यत्रशकेस्थावर ॥ त्रश तेकिणन्या

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