Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 152
________________ श्राज्ञाने. निर्जरा अाज्ञामांहे, तेकिणन्यायें. श्राजामांहे तोजे कर्मतोमवानु उपाय ए करणी धीतरागनी आजामाहे इणन्याय. मो द आज्ञामांहे, ते किणन्याय. कर्मासुमूकावीने सकलकर्मरहित हुवेते वीतरागनीआज्ञामाहे, इणन्याय मोक्षाज्ञामांहे. ___इति इग्यारमु आज्ञद्विार समाप्त. हिवे बारमो ज्ञेय द्वारकहे-जीवने जीवजाणं वो, अजीवने अजीवजाणवो, पुण्यने पुण्यजा एवो, पापने पापजाणवो, आश्रबने आश्रय जाणवो, संबरने संबरजाणवो, निर्धाराने निर्जरा जाणवो, वंधने. बंधजाणबो, मोदने मोदजाण वो ए नव तत्व जाणवा योग्यकह्या. यांमे श्रा दरवायोग्यतीनळे. एकसंबर, बीजोनिर्जरा, ने तीजोमोद, बाकीराब्तत्वगंडवा योग्य. जीवनेगंडवायोग्य, किणन्याय. आपराजीवरोतो नाजनकरवो, ओरकिाहीजीवउपर श्रवीग्रह नहीकरवो, इणन्याय. जीवने गंडवायोग्य. अजी वने गंडवायोग्य, किणन्याय किणही अजीवनपर ममतानकरवी, इणन्याय अजीवनेगंवायोग्य:

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