Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

View full book text
Previous | Next

Page 148
________________ वे-जीवते चेतन, ते पांचोलेकरी अोलखीजें, द्रव्यथकी, देवथकी, कालथकी, नावथकी, गुपथकी, तेमां द्रव्यथकीतो अनंताद्रव्य, क्षेत्र थकी लोकस्थितिप्रमाण, कालथकी प्रादि अं तरहीत, नावथकी अरूपी, गुणथकी चेतन गुण, अजीवते अचेतन, पांचबोलेकरीप्रोलखीजे. द्रव्यथकीतो अनंताद्रव्य. दोत्रथकी लो कालोकप्रमाण, कालथकी आदिअंतरहील, ना. वथकी रूपीअरूपीदोगें, गुणथकी अचेतनगुण. पुण्यतेशुनकर्म, तेपांचबोलाकरीने ओलखीजे. द्रव्यथकीतो अनंतोद्रव्य, क्षेत्रथकीजीवाकने, कालथकी श्रादिअंतरहीत, नावथकीरूपी, गु. पथकी जीवरेशुनपणे उदयावे. पापते अशुनकर्म, पांचबोलाकरीअोलखीजे. द्रव्यथकीअनं ताद्रव्य, देवथकीजीवाकने, कालथकीआदि अंतरहित. नावथकीरुपी, गुणथकीजीवरे श्र शुनपणेजदयावे. कर्मानेग्रहले आश्रब, तेपा. चबोलाकरीअोलखीजे.द्रव्यथकी अनंताद्रब्यक्ष थकीजीवाकने,कालथकीरा ३ नेद. एकेकआश्र बादहीनही,अंतहीनही,तेअनव्याश्री.एके

Loading...

Page Navigation
1 ... 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211