Book Title: Jain Dharm Darshan Part 01 Author(s): Nirmala Jain Publisher: Adinath Jain Trust View full book textPage 7
________________ . . . . . . . . . . किञ्चित वक्तव्य प्रस्तुत कृति की रचना जन सामान्य को जैन धर्म और दर्शन का ज्ञान कराने के उद्देश्य से निर्मित पाठ्यक्रम के अध्यापन हेतु किया गया है। इसमें जैन धर्म और दर्शन के समग्र अध्ययन को छह भागों में विभाजित किया गया है। 1. इतिहास 2. तत्त्वमीमांसा 3. आचार मीमांसा 4. कर्म मीमांसा 5. धार्मिक क्रियाओं से संबंधित सूत्र और उनके अर्थ और 6. धार्मिक महापुरुषों के चरित्र एवं कथाएं आयोजकों ने इस संपूर्ण पाठ्यक्रम को ही इन छह विभागों में विभाजित किया है और यह प्रयत्न किया है कि प्रत्येक अध्येता को जैन धर्म से संबंधित इन सभी पक्षों का ज्ञान कराया जाए। यह सत्य है कि इन छ:हों विभागों के अध्ययन से जैन धर्म का ज्ञान समग्रता से हो सकता है लेकिन मेरी दृष्टि से प्रस्तुत पाठ्यक्रम में कमी यह है कि प्रत्येक वर्ष के लिए हर विभाग के कुछ अंश लिए गये है और प्रस्तुत कृति का प्रणयन भी इसी दृष्टिकोण को सामने रखकर किया गया है और इसलिए जैन धर्म दर्शन के कुछ - कुछ अंश प्रत्येक पुस्तक में रखे गए है। डॉ. निर्मला जैन ने इसी पाठ्यक्रम के प्रथम वर्ष के लिए इस कृति का प्रणयन किया है। पाठ्यक्रम को दृष्टिगत रखते हुए जो भी लिखा गया है वह जैन धर्म दर्शन के गंभीर अध्ययन को दृष्टिगत रखकर लिखा गया है। प्रस्तुत कृति के प्रारंभ में जैन धर्म के इतिहास खण्ड का विवेचन किया गया है। इसके प्रारंभ में धर्मशब्द की व्याख्या और स्वरुप का प्रतिपादन किया गया है। उसके पश्चात् जैन धर्म की प्राचीनता को साहित्यिक और पुरातात्त्विक आधारों से सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। इसके पश्चात् जैनों की कालचक्र की अवधारणा को आगामिक मान्यतानुसार प्रस्तुत किया गया उसके बाद जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की जीवन गाथा को अति विस्तार से परंपरा के आधार पर प्रस्तुत किया गया है। तत्त्व मीमांसा की चर्चा करते हुए नवतत्त्वों की सामान्य जानकारी के बाद विस्तार से जीव तत्व का वर्णन किया गया है। इसमें जीवतत्व के संबंध में आगमिक और पारम्परिक अवधारणा की विस्तृत चर्चा तो हुई है और जो आगमिक मान्यता के अनुसार प्रमाणिक भी है। उसके पश्चात् प्रस्तुत कृति मानव जीवन की दुर्लभता की चर्चा करती है, यह अंश निश्चय ही सामान्य पाठकों के लिए प्रेरणादायक और युवकों के लिए रुचिकर बना है यह स्वीकार किया जा सकता है। श्रावक धर्म के मूल कर्त्तव्यों की सांकेतिक चर्चा भी उचित प्रतीत होती है। आगे सप्तव्यसनों और उनके दुष्परिणामों का जो आंकलन किया गया है वह आधुनिक युग में युवकों में जैनत्व की भावनाओं को जगाने में प्रासंगिक सिद्ध होगा। ऐसी मेरी मान्यता है । आगे कर्म मीमांसा के अन्तर्गत कर्म सिद्धान्त को स्वीकार करने की आवश्यकता द्रव्य कर्म और भावकर्म का स्वरुप, कर्म की विभिन्ना अवस्थाएं, कर्मबंध के कारण तथा कर्मबंध के चार सिद्धांतों की चर्चा की गई है जो जैन कर्म सिद्धान्त को समझने में सहायक होगी ऐसा माना जा सकता है। आगे सूत्र और उनके अर्थ को स्पष्ट करते हुए नमस्कार मंत्र गुरुवंदन सूत्र आदि की चर्चा की गई है। इसमें प्राकृत का जो हिंदी अनुवाद किया गया है वह प्रामाणिक है। आज धार्मिक क्रियाओं के संदर्भ में जो भी जानकारी दी जाय वह अर्थबोध और वैज्ञानिक दृष्टि से युक्त हो, यह आवश्यक है। संकलन E lonetan Pesanal &Prive is als walaDiMahaNRERAR1Page Navigation
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