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५. सन्या ज्ञान
६१-११२ १. सम्यग् ज्ञान का स्वरूप-स्वरूप, ज्ञान की यथार्थता व अयथार्थता, ज्ञान के भेद, ज्ञान की प्रत्यक्ष परोक्षता, मतिज्ञान के भेद, ज्ञान का क्रम-विकास, श्रुत-ज्ञान, मति-श्रुत का अन्तर, श्रुत का प्रामाण्य, भेद, जैनाचार्यों की साहित्य सेवा, अवधिनान, मन पर्याय-ज्ञान, केवल ज्ञान । २ विश्व का विश्लेषण (द्रव्य व्यवस्था)----द्रव्य व्यवस्था का उद्देश्य, द्रव्य क्या है, विश्व का मूल, पृथक्करण, जीवद्रव्य, अजीव । ३. तत्त्वचर्चा--जीव, अजीव, पुण्य के भेद, पाप, आस्रव, सवर, बन्ध, मोक्ष । ४. प्रमाण-मीमासा--प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम प्रमाण, उपमान प्रमाण । ५ नयवाद-नय का स्वरूप, नय की सत्यता, नय के भेद। ६. अनेकान्त, ७ स्याद्वाद, ८ भाषा
नीति-निक्षेप विधान। ६. मनोविज्ञान
११३-१३३ १. इद्रियाँ (पाच), २ इद्रियो के विषय, ३ मन, ४. लेश्या (कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेश्या, पद्म लेश्या, शुक्ल लेश्या), ५ कषाय--१ कषाय का अर्थ-कपाय
के भेद १ क्रोध, २. अभिमान, ३. माया, ४. लोभ । ७. जैन योग
१३५-१४४ १ योग । २ जैन धर्म मे अष्टांग योग-महाव्रत (यम), योगसग्रह (नियम), कायक्लेश (आसन), भावप्राणायाम (प्राणायाम) प्रतिसलीनता (प्रत्याहार), धारणा (धारणा), ध्यान (ध्यान), समाधि (समाधि)। ३ ध्यान--प्रार्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान, (पिण्डस्थ ध्यान, पदस्थ, रूपस्थ, रूपा
तीत), शुक्ल ध्यान ४. समाधि । ८. बाध्यात्मिक उत्क्रान्ति
१४७-१५३ १. चौदह गुणस्थान--मिथ्यात्व गुणस्थान, सास्वादन गुणस्थान, मिश्र गुणस्थान, अविरत सम्यग्दृष्टि, देशविरति, सर्वविरति गुणस्थान, अप्रमत्तसयत गुणस्थान, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण गुणम्यान, सूक्ष्म सम्पराय, उपशान्तमोह गुणस्थान क्षीणमोह, सयोगी केवली, अयोगी केवली गुणस्थान ।