Book Title: Jain Darshan ane Sankhya Yogma Gyan Darshan Vicharna
Author(s): Nagin J Shah
Publisher: Sanskrit Sanskriti Granthmala

Previous | Next

Page 182
________________ 23. જૈનદર્શન અને સાંખ્યયોગમાં શ્રદ્ધારૂપ દર્શન ૧૬૨ 22: आस्तिक्यबुद्धिः श्रद्धा । छांदोग्य उपनिषद, शांकरभाष्य, 7.19 तत्त्वार्थसूत्र, पं. सुखलालजी 1.3 24. ओजन 7.18 25. शंकाकांक्षाविचिकित्साऽन्यदृष्टिप्रशंसासंस्तवाः सम्यग्दृष्टेरतिचाराः । तत्त्वार्थसूत्र 7.8 26.-28 तत्त्वार्थसूत्र, पं. सुखलालजी, 7.18 29. 3 Finding out the real state; द्रव्यस्य चिकित्सार्थं गुणदोषौ शुभाशुभौ. વી. એસ. આપે, ધ પ્રેકટીકલ સંસ્કૃત ઇગ્લીંશ ડિક્ષનેરી 30.-31 तत्त्वार्थसूत्र, पं. सुखलालजी 7.18 32. . ओजन. 1.20. . 33. द्वेषनो विस्तार १५, मान, माया भने सो मे यार पायो छे. 34. चौथा कर्मग्रन्थ, गाथा-13 का पं. सुखलालजी का विवेचन पृ. 65 35. .. ચોથા કર્મગ્રન્થના પોતાના હિન્દી વિવરણમાં પંડિતજી નોંધે છે કે સિદ્ધાંતમાં ગ્રંથિભેદ પછી તરત જ ક્ષાયોપથમિક સમ્યકત્વ થતું મનાયું છે. પરંતુ કર્મગ્રંથમાં પથમિક સમ્યકત્વ થતું મનાયું છે. दूसरा कर्मग्रंथ पं. सुखलालजी का हिन्दी विवरण. 37. प्रथम कर्मग्रंथ पं. सुखलालजी का हिन्दी विवरण पृ. 40 अजन. तथा देखिए दूसरा कर्मग्रंथ, पं. सुखलालजी का हिन्दी विवरण,पृ. 6 विशेषावश्यकभाष्य 2675, प्रथम कर्मग्रंथ, पं. सुखलालजी का हिन्दी विवरण, पृ. 41, 42. 40: उत्तराध्ययन. 28/16. 41.42 प्रवचनसारोद्धारटीका 141/142 43. लोकप्रकाश 3.666 44. ओजन. 3.667 . 45. द्रव्यसंग्रह टीका गाथा 41 पृ. 203 46. तत्त्वार्थसूत्र गुजराती व्याख्या 1.2-3, पंडित सुखलालजी प्रथम कर्मग्रंथ के अपने विवरण में लिखते हैं - कुगुरु, कुदेव और कुमार्ग को त्यागकर सुगुरु, सुदेव और सुमार्ग का स्वीकार करना, व्यवहार सम्यक्त्व है; आत्मा का वह परिणाम, जिसके कि होने से ज्ञान विशुद्ध होता है, निश्चय सम्यक्त्व है । 36. 39.

Loading...

Page Navigation
1 ... 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222