Book Title: Jain Darshan ane Sankhya Yogma Gyan Darshan Vicharna
Author(s): Nagin J Shah
Publisher: Sanskrit Sanskriti Granthmala
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૧૯૭ સંદર્ભગ્રંથસૂચિ सिद्धिविनिश्चय, अकलङ्ककृत, जुओ सिद्धिविनिश्चयटीका सिद्धिविनिश्चयटीका (मूल सिद्धिविनिश्चयसहित), भाग 1-2, अनन्तवीर्य,
सं० महेन्द्रकुमार जैन, भारतीय ज्ञानपीट, काशी, 1959 सुननिपात, सं0 डी. एण्डरसन तथा एच. स्मिथ, पालि टैक्स्ट सोसायटी, लंदन,
1948 सूत्रकृतांग (सुयगडंगसुत्त) (1) सूत्रकृतांग, भाग 1-2, (भद्रबाहुनिर्मितनियुक्ति तथा
शीलांकाचार्यकृतविवरण सहित) सं0 चन्द्रसागरगणी, श्री गोडीपार्श्वनाथ
जैन देरासर पेढी, मुंबई, 1950 (2) सुयगडंगसुत्तं, सं0 मुनि जम्बूविजय, जैन-आगम-ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक 2 . .
(2), श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई 36. 1978 स्थानांग- समवायांग (ठाणंगसुत्तं समवायंगसुत्तं च), सं0 मुनि जम्बूविजय,जैन- :
आगम-ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक 3, श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, 1985. . स्याद्वादमञ्जरी, मल्लिषेणसूरि (1) सं0 आनन्दशंकर ध्रुव, बोम्बे संस्कृत एण्ड प्राकृत सिरिझ ग्रन्थांक 83,
____1933 (अंग्रेजी उपोद्घात, विवरण, परिशिष्ट सहित) ' (2) हिन्दी अनुवाद सहित, संपादक - अनुवादक जगदीशचन्द्र जैन,
रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला, ग्रन्थांक 13, बम्बई, 1935 स्याद्वादरत्नाकर, भाग 1-5, वादी देवसूरि, सं0 मोतीलाल लाधाजी, आर्हतमतप्रभाकर कार्यालय, पुण्यपत्तन, वीर सं0 2453-54
(२) अंग्रेड ग्रंथो Buddhist Logit, Vol 1-2, Th. Stcherbatsky, Mouton and Co. S-Gravenhage,
1958 (The) Central Philosophy of Jainism (Anekantavada), B.K. Matilal,
L.D. Institute of Indology, Ahmedabad-9, 1981 Classical Samkhya, Gerald James Larson, Motilal Banarasidas, Delhi, 1969 (The) Concept of Sraddhā, K.L.Seshagiri Rao, Roy Publishers, Patiala, 1974 (A)Constructive Survey of Upanishadic Philosophy, R.D.Ranade, Oriental Book
Agency, Poona, 1926 (The) Doctrine of the Jainas, Walther Schubring, Motilal., Banarasidas, Delhi,
1978 Early Buddhist Theory of Knowledge, K.N. Jayatilleke,
Motilal Banarasidas, Delhi, 1980
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