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( ९८ ) १४ ॥ पायो बार अनन्त । आयु पल सोगर तणो। च. । कोई अन्य न मितियो संत । समकित रस जाण्यो. नहौं ॥ ० ॥ १५ ॥ हुवा काल अनन्त भव सागर सलियो घणे। चे. वे न मिल्या. साचा सन्त। धर्म रस पानी नहीं ॥ चे ० ॥ १६ ॥ इत्यादिक उपदेश ! जाव दृष्टान्त में जाणिया। चे। कसो स्वामी कहै रस। दया धर्म दिल आणज्यो ॥ च ॥ १० ॥
॥दोहा॥ सुगुरु तणी बाणी सुणी, धणोज रियो राय । हाथ जोडी में इस का है, मैं सरध्या तुमना बाय ॥१॥ परदेशी राजा हिवे. श्रावक ना ब्रत लौध। लागो रंग सजीठ जिम, जाणे अमृत पौध ॥२॥ उठण लागो तिण समें, बिगर खमायो जाय । आचारज रो हेत दे, इस बाल्या मुनिराय ॥३॥
॥ढाल १९मी ॥ नागणे छै राजा तूं वातरा ए। आचारज कितगै जात राए। राय कहे जागा वाम ए। आचारज तीन ज नाम ए ॥ १॥ कला शिल्य धर्म प्रायरिया ए। तीनां रा नाम मैं धारिया ए। गुरु कहै तू जा इसी ए ॥ आरो दिनो भगत करवौ किसी ए ॥ २ ॥ जाणु धर्म