Book Title: Jain Bhajan Sangraha 01
Author(s): Fatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
Publisher: Fatehchand Chauthmal Karamchand Bothra

View full book text
Previous | Next

Page 178
________________ २५ २६ तीर्थङ्करा में २७ २८ केवल्यां में २६ चक्रवर्त वासुदेव मे वलदेव में ३० सम्यक दृष्टि में आगति १०८ गति मोक्षकी आगति | ३५ देवता वैमानिक, ३ नरक पहली से ३८ गति ( १७६ ) ८१ देवता ( पर्मा धर्म १५ कल्त्रिगिक ३ टल्या १५ कर्म भूमि, ४ पहली से चोथी सन्नी तिर्यच १ पृथ्वी १ अप नर्क, वनस्पति मोक्ष आगति ८१ जाति का देवता उपरवत्, १ पहली ८२ नरक o गति ७ सात नारकी से जाय पदवी में मरेतो १४ आगति | १२ देवलोक, ६ नव वैयक, ६ लोकान्तिक तथा २ नारकी पहली दूजी ३२ ७ नारकी मे जाय गत १४ आगति | ८६ जातिका देवता उपरवत् २, नारकी • ८३ पहली दूजी गति पदवी अमर छै आगति | १७१ लड़ीका ( उ वाउका टल्या ) ६६ ३६३ | देवता, ८६ युगलिया, ७ नारकी गनि २५८ ० ६६ देवता, १५ कर्म भूमि, ६ नारकी ५ सन्नी तिर्यंच का पर्याप्ता अपर्याप्ता, ५ असन्नी, ३ विकलेन्द्री का अपर्याप्ता एवं २५८

Loading...

Page Navigation
1 ... 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193