Book Title: Jain Bhajan Sangraha 01
Author(s): Fatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
Publisher: Fatehchand Chauthmal Karamchand Bothra

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Page 192
________________ ( १८८ .) हो मु० ॥ १६ ॥ और साधनें साधदौ, गया छै देवलोक मांय हो मु. ते पिश मुक्ति, सिधावसी, आहुई कर्म खपाय हो म० ॥ १७ ॥ शासण श्री वृद्ध मान री, पाको दोपायो जीबू खाम हो मु० आप तौस्या : औरां में त्यारीया, त्यांरो लौजे नित्य प्रति नाम हो मु० ॥१८॥ शीश नमौजे नित तेहनें, बं दौजे बार बार हो मु० ज्यूँ कर्म कटे निर्जरा हुवे, पाने भवजल पार हो मु०॥ १६ ॥ जंबू स्वामी छहला. केवली, श्रीबीरना शासण मझार हो मु० ते मुक्त गया ारे पांच में, त्यांरो नाम लिया निस्तार हो मु० ॥ २० ॥ ए चौपी जोड़ी जंबू. खामी नौ जंबू पईना कथा रे अनुसार हो मु० दूण में अधिको ओछो कह्यो हुवे, ते ज्ञानी वदे ते तंतसार हो मु० ॥ २१ ॥ सम्बत अठारे चालौस में, जेठ सुदी वारस सोमवार हो मु० चौपी पूरी कौधौ विठारा मध्ये ते-समझावण नरनार हो म० ॥ २२॥ *॥ इति शुभम् ॥३॥

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