________________
( १८० ) . पाना लिख जाचे गा मांही, बाहिर ते ले जाणा नाहौं। खेनामें पिमा नहीं रहणो, लिखत गुमासठे इम बैगो । उगशीस पन्द्रह समय, कार्तिक पुनम पेख । पैंसठ ठाणा लाडवं स काई, जयजश हर्ष विशेष । परम सम्पत गणपति पाई । खाम० ॥ ५ ॥
श्री भिक्षु गणिराज के गुणा की ढाल।
भेट भव चरण ले शरण भिक्षु तणा मरणरा डरक सब दूर भागे । करण जोगां तशी खबर पडियां पछे, स्वाम भिक्षु तगी छाप लागे । भे० ॥ १ ॥ बुद्ध की पच्च भाजन भये भरत में, पंच में काल घसराल आरे । सूत्र में बांचिया ज्ञान में गचिया, तरण तारण भविक नौव तारे ॥ भे० ॥ २ ॥ पुज्य भिक्षु तणा साध वर साधवी वीर गणधर जेहवी चाल चाले। मंच में काल में चीज चौथा तगो, भागलारे मन मांय साले ॥ भे० ॥ ३ ॥ पूज्य भिक्षु तगो, बौर गा घर तो, एक श्रद्धा कछु फर नाहौं । दूसरी मोय बताय भविक जन शुद्ध साधु इण भरत मांहो ॥ भे० ॥ ४ ॥ काम करड़ो घमो खास श्रद्धा तणो । हिवड़े बैसवो दीहिलो जान भाई। हिस्मत वावजो बात विचारज्यो मदमी राखज्यो मन आहौ ॥ मे० ॥ ५॥