Book Title: Jain Bhajan Sangraha 01
Author(s): Fatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
Publisher: Fatehchand Chauthmal Karamchand Bothra

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Page 137
________________ ( १३५ ) 1 २ अठारे पाप सेवाका त्याग करे ते छ्वमें कोण नवमें कोण व नव नवमें जीव संवर निर्जरा ३ सामायक छवसें कोण नवमें कोण छवमें जीव नवमें जौव संवर | ४ ब्रत छवसें कोण नवसें कोणा छवमें जीव नवमें जीव संबर | ५ व्रत छवसें कोण नवमें कोगा छवमें जीव नवमें जौव आसव | ६ अठारे पापको बहरमण छवमें कोण नवसे कोस छवमें जीव नवमें जीव सम्बर | ७ पञ्च महाव्रत छवमें कोण नवमें कोण छवमें जीव, नवमें जीव संवर । ८ पांच चारित्र छवमें कोण नवमें कोगा छवमें जीव, नवमें जौव संवर | ६ पांच सुमती छवमें कोण नवसें कोण छवमें जौव, नवमें जीव, निर्जरा । १० तौन गुप्तौ छवमें कोण नवमें कोण छवमें जौव नवमे जीव, संबर । ११ वारे व्रत व कोण नवमें कोण छवमें जीव, नवमे जव, संबर | १२ धर्म छवमे कोण नवमे कोण छवमे जीव, नव

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