Book Title: Jain Bhajan Sangraha 01
Author(s): Fatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
Publisher: Fatehchand Chauthmal Karamchand Bothra

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Page 136
________________ १५ " ( १३४ ) ॥ लडी तेरमी ॥ छवमें नवमेंकी चरचा | १ कमी को कर्त्ता छव द्रव्यमें कोण नव तत्वमें कोण उत्तर कबमें जीव नवमें जीव आसव | २ कमीको उपावता छवमें कोण नवमें कोय उ० छवमें जौव नवमें जीव आसव | ३ कमीको लगावता छवमें कोण नवमें कोण उ० छवमें जीव नवमें जीव चासव | ४ कमीको कता छवसें कोण नवमें कोण उत्तर छवमें जीव नवमें जीव संबर | ५ कर्मको तोड़ता छवमें कोण नवमें कोण छवरें जीव नवमें जीव निर्जरा । ६ कमीको बान्धता छवमें कोण नवमें कोण छवमें जीव नवमें जीव आक्षव । ७ कर्माको मुकावता छत्र कोण नवमें कोण छव में जीव नवमें जोब मोक्ष | ॥ लड़ी चौदमी ॥ १ अठारे पाप सेवे ते छवमें कोण नवमें कोण छवमें जीव नवमें जीव आसव | " 1 +

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