Book Title: Jain Bhajan Sangraha 01
Author(s): Fatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
Publisher: Fatehchand Chauthmal Karamchand Bothra

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Page 172
________________ ( १७० ) भरतक्षेत्रमे ५१ पावैतिर्यश्चका ४८ मनुष्य ३। जम्बूद्वीप में ७५ पावै-- २७ भरतक्षेत्र १ एरभरत १, देव कुरु १, उत्तरकुल १, हरिवास १, रम्पकवान १, हेमवर १, महगवर १, महविदेह १, यह नव क्षेत्र का सन्नो मनुष्प पर्याप्ता अपर्याप्ता १८, तथा असन्नी मनुष्य ४८ तिर्यञ्चका। लवणा समुद्र में पावै २१६-- अन्तरद्वीप ५६ का तो १६८, ४८ तिर्यञ्चका । धातको खंड में पाये १०२-~ ५४ मनुष्य का अठारह क्षत्रों का त्रिगुण, ४८ तिर्यञ्च का कालोदधि से पाये ४६.-- तिर्यञ्चका ४८ में से चादर तेउका २ टल्या। अर्ध पुष्कर वर होप में पावै १०२धातको खंडवत् जाणवो। . ऊंचा लोक में पाथै १२२-- ७६ देवताका। ४६ तिर्यञ्चका। नौचालोक में पावै ११५---- भवनपति २०, पर्भाधामी ३०, नारकी १४, तिर्यञ्चका ४८, मनुष्यका ३ सर्व १६५

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