Book Title: Jain Bhajan Sangraha 01
Author(s): Fatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
Publisher: Fatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
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५५ बादर पृथ्वीकाय पर्याप्ता असंखात गुणां । ५६, वादर अप्पाकाय पर्याप्ता असंख्यात गुणां । ५७ बादर बायुकाय पर्याप्ता असंख्यात गुणां । बादर तेऊकाय अपर्याप्ता असंख्यात गुणां ।
५८
चूह
बादर प्रत्येक शरीरौ वनस्पति अपर्याप्ता असंख्यात गुणां ।
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( १६६ )
जोतषी देवता संख्यात गुणां ।
जोतीषौनो देवो संख्यात गुणौं । खैचर नपुंसक संख्यात गुणां ।
थलचर नपुंसक संख्यात गुणां ।
जलचर नपुंसक संखात गुणां । चोsन्द्रीका पर्याप्ता संख्यात गुणां ।
पंचेन्द्रका पर्याप्ता विशेषाईया ।
बेन्द्री पर्याप्ता विशेषाईया |
तेइन्द्री पर्याप्ता विशेषाईया |
पंचेन्द्रौ अपर्याप्त संख्यात गुणां ।
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चौइन्द्रो अपर्याप्ता विशेषाईया |
इन्द्रो अपर्याप्ता विशेषाईया ।
बेन्द्र पर्याप्ता विशेषाईया |
बादर प्रत्येक वनस्पती पर्याप्ता श्रसंख्यात गुणां ।
बादर निगोद पर्याप्ता असंख्यात गुणां ।

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