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( ८२.) रस ले घर आया रे, ठिकाणे लगाया रे। सूका में खेतो रे, मांहौं उडे रेतो रे जद लागे हो इक्षुरा खेत अशोभता रे ॥३॥ हिवड़ा में बैठार, थारा प्रणाम सैंठोर । विहार कर नोवां रे, अनेरा गावांर । तोतं इचुरा खेत जिम राजिन्द मत हुवे रे ॥ ४ ॥ बाग गह रौ छायां रे, मांजर ए आयां रे । वह फल में फलिया रे, फल में भार ढलिया रे । तव लागे हो राजिन्द योग सुहावणा रे ॥ ५ ॥ कई आवे ने जावे रे, बहु चीजां खाने रे । पामे र तस साता रे, पान नौला में रातार। तब लागे हो रमणीक वाग सुहावणारे ॥६॥ फागुण बाय बाजेरे, पान मड़वाने लागे रे। निकल गया डाला रे, नहौं फल रसाला रे, तब काला शंखर लागे हो वाग अशोभता र ॥ ७ ॥ हिवड़ा में बेठार, धारा प्रणास सेंठारे । विहार कर जावां रे, अनेरा गांवार । तो तं फागुण रा वांग सम राजिन्द मत हजेरे ॥८॥ लाटा धान माहिजे रे, खाई ने ने दौरे । उपजे उदमादोरे, ढोग देवे अगाधोरे । तब जादा हो लाटा चल लागौ रहै रे ॥ ६ ॥ धुर में वले वोरा रे, मिलिया ठोड़ा ठोड़ा रे । हाकम लाटा
। उंबडा २ वजार रे बले विणजारा सोदागर सहगां भोमियां रे । १० ॥ चोधरी पटवारी रे, तुला