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{ ८७ ) दिया जाबर । जद राणौ मन में जामीया, हाहा गई रहारी आबरे ॥ लाला ॥ जो० ॥ ८ ॥ मैं तो कयो छो हित भयो, इण रे न आई दायरे । कदास जाय कहसौ बाप नें, तो पड़े गला में आय रे ॥ लाला ॥ जो० ॥६॥ मन माहौं चिन्ता अति धयो, लाग रहौ उत्पातरे। लाला। कोई अबसर देखो अटकली, पहिला करघातर। लाला ॥ जो० ॥ १० ॥ छल छिद्र - जोती फिर, एकदिन अवसर जाण रे । थारे बेलारो
छै पारणो, सी म्हारे किजे आगरे। लाला ॥ जो० ॥ ११ ॥ बारबार करो बिनतो, तब राजा मानी बातरे । लाला । या भोजनरी त्यारी करे, करण कंथनी घातरे लाला ॥ जो० ॥ १२ ॥ मुख ऊपर मौठौं लवे, बोले वोहली ग्रौतरे लाल । आ अन्तर घात खेले घणी, आटुसमण केरी बात रे लाला ॥ जो० ॥ १३॥ कुर्ण माता पिता में कामणी, वले सजन सगाने माय रे । ए दुसमया कपड़ा डोलरा कर्म उदै हुवा थायर ॥ जो० ॥ १४ ॥ पहिलो सगपण पिउ तणो, दूसरो बारे ब्रत धारौ रे । तीजो तपसी वैरागिया, गणी करुणा न
आणी लिगारी रे ॥ जो० ॥ १५ ॥ श्रावक ब्रत लौधां __ पछ, तप तेरे बेला कौधर। एक कम चालीस दिन,
राजा जश रा नगारा दोध रे लाला ॥ जो० ॥ १६ ॥