Book Title: Jai Jiya Kappo
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 4
________________ प्रकाशकीय-निवेदन -> Haपू० गच्छाधिपति आचार्य श्री माणिक्यसागरसूरीश्वरजी महाराजनो निश्रामा वि. सं 2010 वर्षे आगमोद्धारक-ग्रंथमालानी स्थापना थइ हती. आ ग्रंथमालाए त्यारबाद प्रकाशनोनी ठीकठीक प्रगति करी छे. ___ सूरीश्वरजीनी पुण्यकृपाए आचार्यश्री साधुरत्नसूरिकृत-वृत्तिसहित आचार्यश्री सोमप्रभसूरि कृत ' यति-जीत-कल्प' नामनो महान् ग्रंथ आगमोद्धारक-ग्रंथमालाना 51 मा रत्न तरीके प्रगट करतां अमोने बहु हर्ष थाय छे. आना संशोधन माटे ‘जैनानंद-पुस्तकालय'नी एक हस्तलिखित प्रति तथा पू० आचार्य विजयरामसूरिजी महाराज द्वारा डहेलाना उपाश्रय नी प्राप्त थएली हस्तलिखित प्रति तेमज श्री जैन श्वेतांबर ज्ञानमंदिर-दर्भावतीनी विधिकार सुश्रावक मफतभाई द्वारा प्राप्त थएली हस्तलिखित प्रतिओनो उपयोग लेवामां आवेल छे. आनी प्रेस कोपी गणिवर्य श्री सौभाग्यसागरजी महाराजे करेल छे तेमज संशोधन पू० गच्छाधिपति आचार्य श्री माणिक्यसागरसूरीश्वरजी म० नो पवित्रदृष्टि नीचे शतावधानी मुनिराजश्री लाभसागजीए करेल छे. ते बदल तेओश्रीनी तेमस जेओए द्रव्य तथा प्रति आपवानी सहाय करी छे. ते महानुभावोनो आभार मानीए छीए. प्रकाशक तपागणेऽभवजैन-शासनस्य प्रभावकाः / आगमोद्धारकाः पूज्या आचार्याऽऽनन्दसागराः // 1 // वाचनादिसौकर्याय संशोध्य यः प्रयत्नतः / युता नियुक्तिवृत्त्याद्यैः प्रकाशिता जिनागमाः // 2 // मुनीनामागमज्ञप्त्यै पत्तनादिपुरेषु यैः / पाण्मासिक्यः शुभाः सप्त दत्ता आगमवाचनाः // 3 // तलाटिकायां सिद्धानेस्तथा सूरतबन्दिरे / जाते यदुपदेशाद् द्वे रम्ये आगममन्दिरे // 4 // तेषां पट्टे रविरिव गगने माणिक्यसागरः सूरिः / यतिजीतकल्पमेतं सम्पादितवान् स वृत्तिवृतम् // 5 // -संशोधकः

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