Book Title: Jagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Author(s): Ratanchand Kochar
Publisher: Charitra Smarak Granthmala
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[६] फत्तेहपुर में, उपकेश घर में । है तप भक्ति रे तप से ही सुख पाइये ॥हीर० ॥२॥ सती शिरोमणि, सद्गुणी रमणी। श्राविका चंपारे दों मासी तप ठाइये । हीर०॥३॥ देव कृपा से, गुरु कृपासे । तप गुण बढते रे कृपा को वारी जाइये ॥ हीर० ॥४॥ हुई तपस्या, मोक्ष समस्या। आनन्द हेतु रे उच्छव रंग चाहिये । हीर०॥५॥ . तप की सवारी, जूलस भारी । बाजित्र बाजे रे जय नारे भी मिलाइये ॥ हीर०॥६॥ अकबर बोले, लोक हैं भोले । झूठी तपस्या रे चंपा को कहै आइये ॥ हीर०॥७॥ पूछे चंपा से, किन की कृपा से। रौजा मनाये रे सञ्चा ही बतलाइये। हीर० ॥८॥ पार्श्व प्रभू की, हीर गुरू की । चम्पा सुनावे रे कृपा का फल पाइये ॥ हीर ॥॥६॥ कृपालु नामी हीरजी स्वामी । ठाना शाही ने रे इन से ही मिल्ना चाहिये । हीर०॥ १०॥ गुरु चरन में भक्ति सुमन है। चारित्र दर्शन रे कर्मों का गढ ढाइये ॥ हीर०॥ ११॥
काव्यम्-हिंसादि . मंत्र-ॐ श्रीं ० पुष्पाणि समर्पयामि स्वी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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