Book Title: Jagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Author(s): Ratanchand Kochar
Publisher: Charitra Smarak Granthmala

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Page 55
________________ ३० ) संवत् पनरे छयाणुवेवरसे,महोच्छवदीक्षाकीकियो॥श्री०ही०॥४॥ सोलेसें सातके वर्षे पंडित पदही पायो॥ श्री० ही० ॥५॥ सोलेसें संवत् श्राठा के वरसें, वाचक पद ही लयो॥श्री० ही०॥६॥ सोलेसें संवत् दशा के वरसे, सूरीश्वर पदवीथयो।श्री०वी०॥७॥ सोलेसें श्रागरे नगरे, प्राय चौमासो कियो॥श्री० ही० ॥८॥ साह अकब्बरकुप्रतिबोध्यो, अमारपडह ठयों ॥श्री ही०॥॥ लू पाकमतछांडीमेघऋषिजी,पांचसेसुशिष्यभयोश्री०डी०॥१० छमासी मरीरोग निवारी, गुरु मेरे दान दियो ॥श्रीव्ही०॥११॥ नगर जीजीयागुरु छोडाया, गउ उपकारकियो॥श्री० ही०॥१२॥ चिडियामर तरखी गुरु देव,श्री गुरु जस्स भयो॥श्री०हो०॥१३॥ बडा वाद चौरासी जीत्या, जिनमत हरख थयो॥श्री०ही०॥१४॥ देस देसमें गुरु जस पायो, हर्षानन्द लयो॥श्री० हो ॥१५॥ तपगच्छतिश्रीहीरसूरीश्वर,जयधारीजसलहयोश्री०वी०१६॥ विजय दानसूरीश्वरपाटे,तपगच्छपतितिलकभयो॥श्रीव्ही०१७n श्रीरूपरुचि गुरु चरण प्रसाद,दयाचि सुख भयोश्रीव्ही॥१८॥ * जगद्गुरु काष्टक-राग हरिगीत * श्री तपागच्छ पवित्र गगने, सूर्य सम सूरीश्वरा । श्री विजयदान सूरीशपट्टे, प्रावियाजे गुण धरा ॥ जे जैन शासन स्तम्भ रूपे , राजता प्रा भूतले । ते हीर सूरीश्वर जगत् गुरुने, नमन हो अवनीतले ॥१॥ जे धर्म घोरी मुनि गणना, पण हता महोटा मणि । जे पंच महाबत पालता, जगजीवने निज सम गणि । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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