Book Title: Jagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Author(s): Ratanchand Kochar
Publisher: Charitra Smarak Granthmala
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( २८ ) ॥ अथ दादा जी स्तवन ॥ म्है तो न्यारा रेहम्यांजी देराणी
जेठांणी आय मेला रहम्यांजी। ए देशी। म्हारा गुरुदेवजी हो लाल, गुरुदेव विघन निवार । म्हा-। गुरुदेवनायक माहरे, ने गुरुदेव है शिरदार, श्रीगुरुदेवकेचरण नम्यांथी, होवे जयजय कार । म्हा. ॥१॥ तपगच्छनायक है गुणलायक, श्रीविजय हीरसुरीन्द.। श्रीगुरु तोरा पाय नमन्तां, पांमे दोलत वृन्द । म्हा. ॥२॥ साह अकब्बरवादकों तुम जीते गुरु जस पाय । जीव दया गुरु तुम वरतावी, तपगच्छ सुजस चढाय। म्हा. जमुनां जलपर बाट चलाई, चल पायै गुरु पार । अधर धारा पर चालण लागे, गुरु करामात है सार । म्हा. श्रीगुरु दान सूरीश्वर पाट, हीरविजय में तेज। कुमति तिमिर सहु दूर निवारी, जिनशासन करे हेजाम्हा. वाद चौरासी श्रीगुरु जीत्या, जैनशासन शोभ चढाय । दिल्ली मांहे दया वरतावी, जैन धरम दीपाय । म्हा. ॥६॥ गुरु हीरसूरी सुपसाय, पामै अरथ भण्डार । हीरगुरु के जे गुण गावै, दया रुची जयकार । म्हा. ॥७॥
स्तुति-..
दामेवाखिल भूपमूर्द्धन निजामाझा सदाधारयन
भी मान शाहि अकब्बरो नरवरो (देशेष्व ) शेषेवपि । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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