Book Title: Jagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Author(s): Ratanchand Kochar
Publisher: Charitra Smarak Granthmala
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उपदेश अमृत पूर जेनों, जगत मांही जल हले ॥ते.॥२॥ . जे देव गुरुवर धर्मना, शुद्ध पंथ ने देखाड़ता। । प्राविश्वमां उपकार करता, कर्म मलने गालता॥
गुणीअल गुरुजी विचर्या, उपकार करवा भूतले॥ते.॥३॥ दिल्ली पति अकबर नरेश ने, बोध प्रापी रीभन्यो। तत्वों जगावीने अहिंसा, स्तंभ रोपी जे गयो । प्रा प्रांखमां प्रांसुभरातां, जड़े नहीं भूतजे ॥ते ॥४॥ श्री वोर प्रभु वावी गया, जे दयारूपी वेलड़ी। जल सींची सींची हेम सुरिए, वेगथी कीधी वड़ो। ते म्लेच्छमांसाम्राज्य मां, खीलावी खते वीरले ते॥५ निज पाटने दीपाववा, सुयोग्य जागवा झानथी। श्री विजय सेन सूरीशने, निज पाट सॉप्यों मानी।। प्रायु वितावीजे गयाछ, स्वर्ग सुन्दर भुतले ॥ ते॥६॥ श्री जैन शासन तत्व भासन, सिद्ध सेन दीवाकग। श्री वज्र के देवेन्द्र सूरि, हेम जेवा सक्षरा ॥ भी हीरला सम हीर पण, चाल्या जता प्रांमुहले ॥ते.७॥ भाद्र शुदि एकादशी दिन, नगर उन्नत भूमि ने। त्यागी गवा स्वर्गे रह्या, त्यां नमन करीये श्रापने । परित्र, दर्शन, शान, म्बाब,षधा निशदिन भूतले । ते होरमरि सम्राट बोधक, विजयताम् अवनितले ॥ते. ८॥
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