Book Title: Jagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Author(s): Ratanchand Kochar
Publisher: Charitra Smarak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ ( १८ ) औं ह्रीँ श्रीँ श्रीहीरविजयसूरीश्वरचरणकमलेभ्यो जलं यजामहे नमः ॥१॥ द्वितीय चंदन पूजा। ॥ दोहा ॥ दूजी पूजा गुरुतणी, करिये चित्त उल्लास । मृगमद चंदनसुमिली, केसर शुद्ध बरास ॥१॥ ॥ ढाल । केसर चंदन घसी घणो, मांहि मेलो घनसार । रखड़ित कचोलडे, धरिये चित्त उदार ॥१॥ गुरु पद पूजा वि जन, भव दव ताप समाय । दूजी पूजा कीजीये, अनुभव लच्छी पाय ॥२॥ ॥ श्लोक ॥ परमुदारगुणं गुरुपूजनं जगदुपाधिचयाद् रहितं जितम् । परमपूज्य पदस्थितमर्चत विनयदर्शन केसरचन्दनः ॥१॥ ओँ ही श्री श्रीपरमगुरुश्रीहीरविजयसूरीश्वरेभ्यश्चन्दनं यजामहे नमः॥२॥ अथ तृतीय पुष्पपूजा। ॥दोहा॥ त्रीजी पूजाकुसुमनी, करिये निर्मल चित्त । पूजा करतां भव लहे, उत्तम अनुभव वित्त॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62