Book Title: Jagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Author(s): Ratanchand Kochar
Publisher: Charitra Smarak Granthmala

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Page 46
________________ १ २१ ) अथ षष्ठी अक्षतपूजा। ॥ दोहा॥ छट्ठी पूजा भवि करो, अक्षय शुद्ध प्रखंड । चन्द्रकिरण समउज्जवला, धर्मस्थिति गरुमंड ॥१॥ ॥ ढाल ॥ उज्ज्वल तंदुल अक्षत, विविध प्रकारनां लाय। .. - कंचन मणि रयणे जडया, थाल भरी भरमाय ॥१॥ स्वस्तिक करि गुरु सन्मुखे, भावना भावोसार। अक्षत पूजा जो करे, ते लहे सुख अपार ॥२॥ ॥श्लोक।। . परम-अक्षतभावकृतेऽर्जिते ददति वाञ्छितसुखसमुद्भवैः। मुगरुपूजनलब्धिसमागमे विजयहोरसूरीश्वर-अर्चितः ॥१॥ ओं. हाँ श्री. श्रीपरमगुरुश्रीहीरविजयसूरीश्वरचरणकमलेभ्योऽक्षतं यजामहे नमः ॥ ६॥ अथ सप्तमी फलपूजा । ___ दोहा।। . . सातमी पूजा भवि जना, करिये हर्ष अपार ।। ए पूजा करतां लहो, अनुभव फल सुखकार ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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