Book Title: Jagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Author(s): Ratanchand Kochar
Publisher: Charitra Smarak Granthmala
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॥ ढाल ।। जाई .नई केतकी, उमणो मरुनो सार ..." ' 'मोगरो चंपक मालती, श्रीगुरु चरणे धार ॥१॥
बोलसिरी जाइ फूल, केवडोसरस गुलाब शुद्ध सुगंधित फूले करी, गुरु पूजोभरीछाब ॥२॥
॥ श्लोक ॥ सरसपुष्पसुगन्धितमर्चितं सकलवाञ्छितदायकचचितम् सकलमङ्गलसंभवकारणं गुरुसुगपादपपूजनधारणम् ॥१॥
ओ ही श्री श्रीपरमगुरुश्रीहीरविजयसूरीश्वरचरणकमलेभ्यः पुष्पं यजामहे नमः ॥३॥
अथ चतुर्थी धूप पूजा। .
॥ दोहा ॥ चोथी पूजा धूपनी, करियें हर्षे अमंद । कुमति मिथ्यात्व निवारजो, पूजो श्रीहीर सूरींद ॥१॥
॥ढाल ॥ अगर चंदन वली मृगमद, कुंदर ने लोबान वस्तु सुगंध मिलाय के, करिये प धूपधान ॥१॥ धूप करो गुरु सन्मुख, प्राणी भाव विशाल । जिम पामो भवि संर्मात, दिन दिन मंगल माल ॥२॥
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