Book Title: Jagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Author(s): Ratanchand Kochar
Publisher: Charitra Smarak Granthmala

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Page 29
________________ [४] (२) द्वितीय चंदन पूजा दोहा विजयदानसूरि विचरते आये पाटणपुर । उपदेश से भविजीवको, मार्ग बतावे धूर ॥१॥ गुरुवर की सेवा करे, मणिभद्र महावीर । करे समृद्धि गच्छ मे , काटे संघ की पीर ॥२॥ इस समय गुरुदेव को , हुआ शिष्य का लाभ । तपगच्छ में प्रतिदिन बढे, धर्मलाभ धनलाभ॥३॥ (ढाल-२) ( तर्ज-धनरवो जग में नर नार) धन धन वो जग में नर नार, जो गुरुदेव के गुण को गावें ॥टेर॥ पालनपुर भूमिसार, ओसवाल वंश उदार। महाजनके घर श्रीकार, प्रल्हादन पासकी पूजा रचावे॥धन०॥१॥ धन सेठजी कूराशाह, नाथी देवी शुभ चाह । चले जैन धर्म की राह,धर्म के मर्म को दिलमें ठावे॥धन० ॥२॥ संवत् पन्द्रहसो मान, तिर्यासी मिगसिर जाण । हीरजी काजन्म प्रमाण, शान शौकत जोकुल की बढावे॥धन०॥३॥ शिशु वय में हीर सपूत, परतिख ज्यू शारद पूत । बल बुद्धि से अद्भुत, ज्ञान क्षय उपशम के ही प्रभावे॥धन०॥४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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