Book Title: Jagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Author(s): Ratanchand Kochar
Publisher: Charitra Smarak Granthmala

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Page 33
________________ [८] शाह अकबर यों भाव बतावे, हीरे कापाकखिलाना पड़ेगा॥१०॥ चारित्र दर्शन गुरु चरण में, ध्यान काधूप जमाना पड़ेगा ॥११॥ काव्यम्-हिंसादि० मंत्र-ॐ श्री धूपम् समर्पयामि स्वाहा ॥४॥ पंचम दीपक पूजा __ दोहा अब अकबर गुजरात में, मेजे मौदी कमाल । बोलावे गुरु हीर को, फतेहपुर खुशहाल ॥१॥ संवत् सोलसो चालिसा, आये श्री गुरु हीर । बने गुरु उपदेश से, धर्मी अकबर मीर ॥२॥ (ढाल-५) ( तर्ज- घड़ी धन्य श्राजकी सबको, मुबारक हो २) इसी दुनियां में है रोशन, “जगद गुरू" नाम तुम्हारा॥ कई को दीनी जिनदिक्षा, कई को ज्ञान की भिक्षा। कई को नीति की शिक्षा, कई का कीना उद्धारा ॥ इसी० ॥१॥ लूकापति मेघजी स्वामी, अठ्ठाइस शिष्य सहगामी । सूरि चेला बने नामी, करे जीवन का सुधारा । इसी० ॥२॥ कीड़ी का ख्याल दिलवाया, अजा का इल्म बतलाया। मुनिका मार्गसमझाया, संशय सुल्तान का टारा। इसी० ॥३॥ शाही सन्मान तो पाया, पुस्तक भण्डार भी पाया। बड़ा प्राग्रा में खुलवाया, अकब्बर नाम से सारा॥ इसी०॥४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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