Book Title: Jagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Author(s): Ratanchand Kochar
Publisher: Charitra Smarak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ [१५] कलश (राग-वस- अवतो पार भये हम साधो) अाज तो जगद्गुरु गुण गाया, अानन्द मंगल हर्ष सवाया॥टेर॥ वीर जगत्गुरु पाट परंपर हुये सूरि गणी मुनिराया। हुये बुद्धिविजय गणी जिनने,संवेगरंग का कलश चढाया ॥१॥ श्राप के आदिम पट्टप्रभावक, मुक्तिविजय गणी शासन राया। अापके पट्टमें विजय कमल सूरि, स्थविरविनय विजयजी गवाया. आपके शिष्य शासन दीपक, श्री चारित्रविजय गुरुराया। आदिम जैन गुरुकुल स्थापक, जिनके यशका पार न पाया ॥३॥ आपके सेवक दर्शन ज्ञानी, न्याय ने जयपुर में गुण गाया। संवत् उन्नोसो लत्तार, जगत्गुरु का दिन मनाया ॥४॥ तप गच्छ मन्दिर में जगगुरु के, चरण कमल सबको लुखदाया। सेवे भंडारी कोचर जी, चोड़िया पालरेचा सुहाया ॥५॥ म्हेता, छाजड़ बैद सचेती, ढाढ गोलेच्छा मुखपाया। ढौर गहेलड़ा वम् छजलानी, नौलखा सिंघीव खीसरा भाया ॥६॥ कोठारी लोढा करणावट, वाफणा पटनी शाहा उमाया। जोहरी हरखावत पोरवाला, श्री श्रीमाल हैं भक्ति रंगाया॥७॥ संघ ने मिल कर भाव सवाया गुरुपूजन का पाठ पढाया। शिर नमायाँ जयजय पाया चारित्र दर्शन नाद गजाया ॥८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62