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आधुनिक गद्य साहित्य
अस्यम ही विकासका मार्ग पाता है, अतः आधुनिक युगमें ऐसा साहित्य ही अधिक उपयोगी हो सकता है, जिसमे बुद्धिपक्षकी तार्किकता भी पर्यात मात्रामे विद्यमान रहे । जीवनकी विवेचना तथा मानवकी विभिन्न समस्याओका सर्वाङ्गीण और सूक्ष्म ऊहापोह गयके माध्यम द्वारा ही सभव है। इस वीसवीं शताब्दीम विषयके अनुरूप गद्य और पद्मक प्रयोगका क्षेत्र निर्धारित हो चुका है। कथा-वर्णन, यात्रा-वर्णन, भावोके मनोवैज्ञानिक विग्लेपण, समालोचना, प्राचीन गौरव-विवेचन, तथ्य-निरपण आदिमे गद्य शैली अधिक सफल हुई है।
इस शताब्दीमें निर्मित जैन गद्य साहित्यके रत्न साहित्य कोपकी किसी भी रत्नराशिसे कम मूल्यवान और चमकीले नहीं है। यद्यपि इस शताव्दीके आरम्भमें जैन गद्य साहित्यका श्रीगणेश वचनिकाओं, निबन्ध और समालोचमाओंसे होता है तो भी कथासाहित्य और भावात्मक गद्य साहित्यकी कमी नहीं है । आरम्भके सभी निवन्ध धार्मिक, सास्कृतिक और खण्डनमण्डनात्मक ही हुआ करते थे। कुछ लेखकोने प्राचीन धार्मिक ग्रन्थोका हिन्दी गद्यमे मौलिक स्वतंत्र अनुवाद भी किया है, पर इस अनुवादकी भापा और शैली भी १८वीं और १९वीं शतीकी भाषा और शैलीसे प्रायः मिलती-जुलती है । पडित सदासुखने रत्नकरण्डश्रावकाचारका भाष्य और तत्त्वार्थसूत्रका भाष्य-अर्थ प्रकाशिकाकी रचना इस शतीके आरम्भमे की है । पन्नालाल चौधरीने वसुनन्दि-श्रावकाचार, जिनदत्त चरित्र, तत्त्वाथसार, यशोधरचरित्र, पाण्डवपुराण, भविष्यदत्तचरित्र आदि ३५ ग्रन्योंकी वचनिकाएँ लिखी हैं । मुनि आत्मारामने खण्डन-मण्डनात्मक साहित्यका प्रणयन हिन्दी गद्यमें किया है। आपकी भाषामे पजाबीपना है। पाटन निवासी चम्पारामने गौतमपरीक्षा, वसुनन्दिश्रावकाचार, चर्चासागर आदि की वचनिकाएँ, जौहरीलाल शाहने सन १९१५ में पद्मनन्दि पञ्चविशतिका की वचनिका, जयपुर निवासी नाथूलाल दोषीने सुकुमालचरित्र, महीपालचरित्र आदि; पूनीवाले पन्नालालने विद्वबनवोधक और उत्तरपुराणकी