Book Title: Hindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 212
________________ परिशिष्ट कतिपय ग्रन्थरचयिताओंका संक्षिप्त परिचय धर्मसूरि- इनके गुरुका नाम महेन्द्रसूरि था । इन्होंने सवत् १२६६ मे जम्बूस्वामी रासाकी रचना की है। इस ग्रन्थकी भाषा गुजरातीसे प्रभावित हिन्दी है । प्रवन्धकाव्यके लिखनेकी शक्ति कविमे विद्यमान है । जम्बूस्वामीरासाकी भाषाका नमूना निम्न प्रकार है । जिण चउचिस पय नमेवि गुरुचरण नमेधि | जम्बूस्वामिहिं राणूं चरिय भवित निसुणेषि ॥ करि सानिध सरसत्ति देवि जीयरयं कहाणउ । जंबू स्वामिहिं (सु) गुणगहण संखेचि बखाणउ ॥ जंबुदीधि सिरि भरहखित्ति तिहिं मयर पहाणउ | राजगृह नामेण नयर पहुची वक्खाण्ड || विजयसेन सूरि- इनके शिष्य वस्तुपालमन्त्री थे । वस्तुपालने संवत् १२८८ के लगभग गिरनारका सघ निकाला था | विजयसेन सूरिने रेवन्त गिरिरासाकी रचना इस यात्रा तथा इस यात्रामे गिरिनार पर किये गये जीणोद्धारका लेखाजोखा प्रस्तुत करनेके लिए की है। इस ग्रन्थकी मापा पुरानी हिन्दी है, पर गुजरातीका प्रभाव स्पष्ट है। नमूना निम्न प्रकार है परमेसर तित्थेसरह पयपंकज पणमेचि । भणिसु रास रेवंतगिरि- अविकदिवि सुमरेवि ॥ गामागर- पुरन्धय गहण सरि-सरवरि-सुपरसु । देवभूमि दिखि पच्छिमह मणहरु सोरठ देसु || विनयचन्द्र सूरि-संस्कृत और प्राकृत भाषाके मर्मज्ञ विद्वान्

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