Book Title: Hindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 235
________________ परिशिष्ट २३९ उपदेशसिद्धान्तरत्नमाला, प्रमाणपरीक्षा, नेमिनाथपुराण और ज्ञानसूर्योदयनाटककी वचनिकाऍ लिखी है। आप ओसवाल जातिकै दिगम्बर मतानुयायी थे । इन्होने पढ भी रचे हैं। हिन्दी कविता इनकी उत्तम है । पदोमें रस और अनुभूति छलछलाती है। कवि दौलतराम - कवि दौलतराम हिन्दी के उन लब्धप्रतिष्ठ कवियोमे परिगणित हैं, जिनके कारण माँ भारतीका मस्तक उन्नत हुआ है । यह हाथरसके रहनेवाले थे और पल्लीवाल जाति के थे । इनका गोत्र गगीटीवाल था, पर प्रायः लोग इन्हे फतेहपुरी कहा करते थे। इनके पिताका नाम टोडरमल था। इनका जन्म विक्रम भवत् १८५५ या १८५६ के बीचमे हुआ है । कविके पिता दो भाई थे, छोटे भाईका नाम चुन्नीलाल था । हाथ. रसमे ही दोनो भाई कपडेका व्यापार करते थे । कवि दौलतरामके ध्वसुरका नाम चिन्तामणि था, यह अलीगढ़ के निवासी थे । कविके सम्बन्धम कहा जाता है कि यह छींटे छापनेका काम करते थे। जिस समय छीट का थान छापनेके लिए बैठते थे, उस समय चौकीपर गोम्मटसार, त्रिलोकसार और आत्मानुशासन ग्रन्थोको विराजमान कर लेते थे और छापने के कामके साथ-साथ ७०-८० श्लोक या गाथाएँ भी कण्ठाग्र कर लेते थे । सवत् १८८२ मे मथुरा निवासी सेठ मनीरामजी प० चम्पालालजी के साथ हाथरस आये और वहाँ उक्त पडितजीको गोम्मटसारका स्वाध्याय करते देखकर बहुत प्रसन्न हुए तथा अपने साथ मथुरा लिवा ले गये । वहाँ कुछ दिन तक रहनेके उपरान्त आप सासनी या लकरमे आकर रहने लगे | कविके दो पुत्र हुए; बढ़े पुत्रका नाम लल टीकाराम है, इनके कान आजकल भी लम्करमे निवास करते हैं । इनकी टो रचनाएँ प्रसिद्ध है— छहटाला और पदसग्रह | छहढालाने तो कविको अमर बना दिया है। भाव, भाषा और अनुभूतिकी दृष्टिसे यह रचना बेजोड है ।

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