Book Title: Hindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 219
________________ परिशिष्ट २२३ दुखफुलिंग फुकरे, तरल तृष्णा कल काढहि । धन इंधन आगम संजोग, दिन-दिन अति बादहि ॥ लहलहै सोम पावक प्रवल, पवन मोह उद्धत बहै। दशहि उदारता आदि बहु, गुणपतंग कुँवरा कहै॥ पाण्डे हेमराज-वचनिकाकारोमै पाण्डे हेमराजका नाम आदरके साथ लिया जाता है। इनका समय सत्रहवी शतीका अन्तभाग और अठारहवी शतीका आरम्भिक भाग है। यह पण्डित रूपचन्दजीके शिष्य थे। इनकी पॉच वचनिकाएँ और एक छन्दोवद्ध रचना उपलब्ध है। वचनिकाओमे प्रवचनसार टीका, पञ्चास्तिकायटीका, भाषाभत्तामर, नयचक्रकी क्चनिका और गोम्मटसार वनिका है। 'चौरासीवोल' छन्दोबद्ध कान्य है । पाण्डे हेमराज श्रेष्ठ कवि थे। इन्होने शार्दूलविक्रीडित, छप्पय और सवैया छन्दोमे सुन्दर भावोंको अभिव्यक्त किया है। इनके गद्यका उदाहरण निम्न है___"ऐसे नाही कि कोई कालद्रव्य परिणाम विना होहि जाते परिणाम विना द्रव्य गदहेके सींग समान है, जैसे गोरसके परिणाम दूध, दही, एन, तक इत्यादि अनेक है, इनि अपने परिणामनि विना गोरस जुदा न पाइए जहाँजु परिणाम नाहीं वहाँ गोरसकी सत्ता नाहीं तैसे ही परिणाम विना दन्यकी सत्ता नाहीं। कविताका उदाहरण प्रलय पवन करि उठी आगि जो तास पटतर । वमै फुलिग शिखा उतग पर जलै निरन्तर । जगत समस्त निगल भस्म कर हैगी मानो। तडतडात दव मनल जोर चहुँदिशा उतानो । सो इक छिनमै उपशम, नामनीर तुम लेत। होइ सरोवर परिनमै, विकसित कमल समेत॥

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