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नाटक
कथानक
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पकथन स्वाभाविक बन पडा है । चरित्र-चित्रणकी दृष्टिसे यह नाटक सुरुचिपूर्ण और स्वाभाविक है। इस नाटककी शैली पुरातन है । भाषा उर्दू मिश्रित है । तथा एकाध स्थलपर अस्वाभाविकता भी प्रतीत होती है ।
श्री भगवत्स्वरूपका यह देश-दशा-प्रदर्शक, करुणरस प्रधान नाटक है। इसमे सामाजिक युगकी विपमता और उसके प्रति विद्रोहकी भावना है । पूँजीपतियोकी ज़्यादती और गरीबोकी करुण आह ग़रीब एव धनी और निर्धनके हृदयकी विशेषताओका सुन्दर चित्रण किया गया है । रुपयोकी माया और लक्ष्मीकी चचलताका हृय्य (स्वरूप) दिखाकर लेखकने मानव हृदयको जगानेका यत्न किया है । यह सामाजिक नाटक अभिनय योग्य है । इसमे अनेक रसमय दृश्य वर्तमान है, जो दर्शकोको केवल रसमय ही नही बनाते, किन्तु रसविभोर कर देते हैं । भगवत्ने वस्तुतः सीधी-सादी भाषामे यह सुन्दर नाटक लिखा है ।
इस नाटक के रचयिता श्री ब्रजकिशोर नारायण है। इसमे विद्याकी अनन्यतम विभूति भगवान् महावीरके आदर्श वर्द्धमान महावीर जीवनको अकित किया गया है ।
वर्द्धमान जन्मसे ही असाधारण व्यक्ति थे । बचपनके साथी भी उनके व्यक्तित्वसे प्रभावित होकर उनकी जयजयकार मनाते रहते थे । भगवान् वर्द्धमानकी अद्भुत वीरता और अलौ
किकं कायोकै कारण उनके माता-पिताने भी उन्हें देवता स्वीकार कर लिया था । जब कुमार वयस्क हुए तो पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशलाको पुत्र - विवाहकी चिन्ता हुईं, किन्तु विरागी महावीर बरावर टालमटूल करते रहे । जब माता- पिताका अधिक आग्रह देखा तो उन्होने एक विनीत आज्ञाकारी पुत्रके समान उनके आदेशका पालन किया और विवाह कर लिया। जब माता-पिताका स्वर्गवास हो गया और भगवान् के भाई नन्दिवर्द्धनने राज्यभार ग्रहण किया तो वर्द्धमानका