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कृति उपरथी प्रत माहिती कुल झे.पृष्ठ-५२, डीवीडी-३०/४९ पातासंघवी १०४-२- पे.क्र. १२, पृ. १४५-१४९, प्रवचनसन्दोह आदि, संपूर्ण
डीवीडी-३३/५१ पाताहेसं ११३- पे.क्र.८, पृ. १५७-१५८, उपदेशमालाप्रकरण आदि, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-५२, डीवीडी-७/१७ पाताहेसं ११४-पे.क्र.९, पृ. १३०-१३३, उपदेशमालाप्रकरण आदि, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-७८, डीवीडी-७/१७ पाताहेसं १६१- पे.क्र. ३२, पृ. २४२-२४४, दशवैकालिकसूत्र आदि प्रकरण सङ्ग्रह, वि-१३८९, संपूर्ण
पे. विशेष- गाथा-२०. प्रत विशेष- प्रान्ते कृतिओनी अनुक्रमणिका आपेली छे.
____ कुल झे.पृष्ठ-१७०, डीवीडी-८/१८ भांता ६९- पे.क्र. २६, पृ. १७८A-१८२A, आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण आदि, संपूर्ण
पे. विशेष- सूचीपत्रांक-१-३७०. प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.२-१३३.
कुल झे.पृष्ठ-४०, डीवीडी-७२/८२ पाकाहेम २५९६- पे.क्र. ३, पृ. २५-२६, साधुश्रावकसामाचारी आदि, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-७ पाकाहेम १०५२०- पे.क्र. २, पृ. १-१६, संस्तारकप्रकीर्णक आदि, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१६ आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णक
प्रा., पद्य, गा.१२०, पाकाहेम १०५१३, पृ. ७, आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णक, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-७ पाकाहेम १०५१४, पृ. ४, आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णक, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-५ आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णक बृहत् (आउरपच्चक्खाणपयन्ना बृहत्), (बृहत् आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक), (बृहत् आउरपच्चक्खान पयन्ना) गणि-वीरभद्र, प्रा., पद्य, गा.७१, आदि वाक्यः देसिक्कदेसविरओ सम्मद्दिट्ठी मरेज्ज जो जीवो।...
कृ.विः गाथा ६० थी ८० सुधी मळे छे. पाताखेत ४२- पे.क्र. १५, पृ. १, कर्मविपाकादि (प्राचीन) १७ ग्रन्थो, संपूर्ण
पे. विशेष- गाथा-८०. प्रत विशेष- पेटाकृतिओना पृष्ठाङक उपलब्ध नथी.
डीवीडी-६२/६४ पातासंघवीजीर्ण ४६- पे.क्र.८, पृ. २०३-२१९, सङ्ग्रहणी आदि, वि-१२८६, अपूर्ण पे. विशेष- अपूर्ण. गाथा-६४. पत्रक्रम अव्यवस्थित है. झेरोक्ष पत्र-६५-६६,७१-७२ व ७३-७४ पर है. प्रारंभ
पत्र-७२ व अन्त पत्र ६६ है. प्रत विशेष- पेटांकों का क्रम अव्यवस्थित है. दो प्रतों के पत्र इसमें सम्मिलित है. संवत् १३०९ पालनपुर में
संघ के समक्ष आचार्य पद्मदेवसूरि द्वारा साध्वी नलिनप्रभा को पढने हेतु यह प्रत दी गयी. प्रतिलेखन वर्ष मात्र ८६ वर्षे इस तरह लिखा हुआ है. अतः११८६ अथवा १२८६ प्रतिलेखन वर्ष होना संभव है. पेटांक में उल्लिखित पत्रवाले कोष्ठक के पत्रांक ताडपत्रीय है.
कुल झे.पृष्ठ-८०, डीवीडी-५७/६० पातासंघवी १६८- पे.क्र.७, पृ. ९१-९४, वन्दारुवृत्ति आदि, संपूर्ण पे. नाम- आउरपच्चक्खाण बृहत्
डीवीडी-३६/५४
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