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कृति उपरथी प्रत माहिती भांता ७०- पे.क्र. ३६, पृ. ४३B-४५A, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण
पे. विशेष- सूचीपत्रांक-१-१४१४. प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमा पत्रांक २५०A-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ आचार्यस्तुति
सं., पद्य, श्लोक१३, आदि वाक्यः धन्य स्वयं येन विज्ञातः संसारगिरिदारकः... भांता ७०- पे.क्र. ३५, पृ. ४३०-४३B, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण
पे. विशेष- सूचीपत्रांक-१-१४१५. प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमां पत्रांक २५००-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ आचार्योनी स्तुति
, पद्य, पातासंघवी २०६-२- पे.क्र. ५३, पृ. १४२-१४४, योगशास्त्र चार प्रकाश आदि, संपूर्ण पे. विशेष- पत्र १४५मुं नथी
डीवीडी-३८/५५ आञ्चलिकमतनिरास प्रा., गद्य, आदि वाक्यः जइ चेइयपरिठविया वेलावियं कालं पडिक्कन्ता अकए आवस्सए गोसे य आवस्सए...
कृ.विः अं.वाक्य-से अप्पबियाए वा अप्पतइयाए वा...निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा. भांता ७०- पे.क्र. ७९, पृ. ९७B-१०३B, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमां पत्रांक २५००-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ आठ दृष्टि स्वाध्याय
उपाध्याय-यशोविजयजी गणि[तपागच्छीय], मारुगूर्जर, पद्य, आदि वाक्यः शिवसुख कारण उपदिसी योगतणी अरु
दिट्ठी रे... तालाद ३९१-१- पे.क्र. १, पृ. १B-४A, आठ दृष्टि स्वाध्याय, वि-१८वी, संपूर्ण प्रत विशेष- महोपाध्याय श्री यशोविजयजी म.सा. की स्वहस्तलिखित लिपिवाली प्रति.
कुल झे.पृष्ठ-८, डीवीडी-९४/९६ तालाद ३९१-४- पे.क्र. १, पृ. १-४, आठ दृष्टि स्वाध्याय व सम्यक्त्व चतुष्पदिका, संपूर्ण प्रत विशेष- दो प्रतों को एक साथ रखा गया है जो दोनो अलग-अलग पेटांक रूप में है., पेटांक-१ के
पत्र-४ तथा पेटांक-२ के ७ पत्र है. दोनो पेटांक के पत्र को क्रमशः गिना गया है.
कुल झे.पृष्ठ-४, डीवीडी-९४/९६ आतुरप्रत्याख्यान लघु (आउरपच्चक्खाण लघु), (लघु आतुरप्रत्याख्यान), (लघु आउरप्रत्याख्यान) प्रा., पद्य, गा.६०,
कृ.विः गाथा परिमाणमा ४० थी ९४ सुधीनुं वैविध्य जोवा मळे छे. आनी साथे संकळाएल केटलीक प्रतो
वीरभद्र गणि वाला आउर पच्चक्खाणनी अगर "अरहन्ता मंगलं मज्झ..." आदिवाक्यवाला के पछी "कुससत्थरे निसन्नो..."वाला आदिवाक्य वाला आउर पच्चक्खाणनी पण होई शके.(महावीर जैन
विद्यालयथी आ बन्ने छपाया छे) पाताखेत २३- पे.क्र.८, पृ. ३२३-३२५, अनेकार्थसङ्ग्रह आदि २५ ग्रन्थो, संपूर्ण
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