Book Title: Haribhadrasuri krutanyashtakani Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 9
________________ अनुक्रमणिका. क. विषय. ४० व्यप्रत्याख्याननुं विस्तारथी स्वरूप. ४१ जावप्रत्याख्याननुं विस्तारथी स्वरूप. ( ज्ञानाष्टकम् ) ( ९ ) ४२ ऋण प्रकारना ज्ञानोनुं स्वरूप. ४३ विषयप्रतिज्ञास ज्ञाननुं स्वरूप. ४४ आत्मपरिणतिमद् ज्ञाननुं स्वरूप. ४५ तत्वसंवेदन ज्ञाननुं स्वरूप. (वैराग्याष्टकम् ) ( १० ) ४६ त्रण प्रकारना वैराग्योनुं स्वरूप. ४७ ध्यान नामना वैराग्यनुं स्वरूप. ४० मोहगर्जित वैराग्यनुं स्वरूप. ४९ ज्ञानसंगत वैराग्यनुं स्वरूप. ( वादाष्टकम् ) (१२) १२ त्रण प्रकारना वादोनुं स्वरूप. ५३ शुष्कवादनुं स्वरूप. ५४ विवादनुं स्वरूप. ५५ धर्मवादनुं स्वरूप. Jain Educationa International ( धर्मवादाष्टकम् ) ( १३ ) ५६ धर्मनां प्रमाणोनुं स्वरूप. पृष्ठ. (तपोऽष्टकम् ) ( ११ ) ५० तप करवामां दुःख बे के, नहीं ? तेनुं विस्तारथी वर्णन. ११४ ५१ रत्नार्थी व्यापारीनुं दृष्टांत. ११८ Ug १०१ For Personal and Private Use Only १०३ १०३ १०५ १०७ 20吧 १० ए ११० ११२ १२० १२१ १२२ १२५ ( एकांतनित्यपक्ष खंडनाष्टकम्) (१४) १३३ ५७ अन्यदर्शनीए मानेतुं श्रात्मानुं स्वरूप५० एकांत नित्यात्माने हिंसा श्रादिकनुं घटमानपणं १३४ १२७ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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