Book Title: Gyanpanchami
Author(s): Manek Bahen
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 13
________________ मासमण देवां, ५१ लोगस्सनो काउसग्ग करवो, बनता सुधी पौषध अवश्य करवो; आखो दिवस ज्ञान ध्यानमांज व्यतित करवो. ज्ञानना बहुमान माटे योग्य स्थळे सुशोभित चंदरवा पुंठीआ विगेरे बंधावी ज्ञान पधरावQ अने अनेक भव्य जीवो दर्शन निमित्ते आवे तेवो आकर्षक देखाव करी ज्ञाननी भक्ति जयणापूर्वक करवी. ज्ञान समीपे गानतान करवू-करावं, ज्ञाननी पूजा भणाववी. इत्यादि करीने अनेक उत्तम जीवो ज्ञानना आराधनमा तत्पर थाय तेम करवू. .. आत्माना सर्व लक्षणोमां " ज्ञान" प्रथम पद धरावे छे, तेना वडेज आ जीव " चेतन" गगायेलो छे. ते लक्षण अथवा गुणने प्रकट करवा माटे जेम बने तेम वधारे प्रयास करवानी आवश्यकता छे. ते आवश्यकता सिद्ध करवा माटे आ नचे " ज्ञानाचार" नु-तेना आठ प्रकारनुं स्वरूप, तेनी उपरना दृष्टांत साथे प्रारंभमांज बताववामां आव्युं छे. ते लक्षपूर्वक दांची जवानी प्रार्थना छे. कारण के ते ध्या. नपूर्वक वाचवाथी ज्ञानना आराधनमा अवश्य तत्परता प्राप्त थायतेम छे. आ संबंधमां प्रारंभमां वधारे विस्तार करवानी जरुर नथी केमके नीचेना लेखनी अंदरज ते हकीकत विस्तारथी बताववामां आवेली छे. . ज्ञानाचार* . . . आ जगत्मा भव्य प्राणीओना चित्तने उत्तम रुचि उत्पन्न करनार श्रीमान् जैनमतने विषे सारभूत सम्पक आचार पांच प्रकारनो कह्यो छे* * आ विभाग श्री आच र प्रदिप ग्रंथमाथी लइने तेनुं भाषां. . तर करेलु छे. .

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