Book Title: Gyanpanchami
Author(s): Manek Bahen
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 11
________________ श्री ज्ञान पंचमीनो तप. " ज्ञानना " आराधन माटे एटले आत्मानो ज्ञानगुण जे अनादि काळथी झानावरणीय कर्मना संयोगे अवरायेलो छे तेने प्रगट करवा माटे अने ज्ञानवरणीय कर्मनो क्षय ( क्षयोपशम ) करवा माटे " ज्ञान पंचमी " नो तप अति उत्कृष्ट साधनभूत छे. ज्ञानना आराधन माटे शास्त्रकारे बीज, पांचम ने अग्यारश ए त्रण तिथिओ बतावी छे. परंतु तेमा मुख्यता पांचमनी छे. प्राये प्रवृत्ति पण पंचमी तप करवानी विशेष छे. आतप कोइपण वर्षना कार्तिक मासनी शुक्ल पंचमीथी शरु करवामां आवे छे आ पंचमी " सौभाग्य पंचमी "ना नामथी ओळखाय छे. ज्ञान मेळववाना उत्सुक श्रावक श्राविकाओ अन साधु साध्वीओ आ तप विशेषे करे छे. आ तप पांच वर्ष ने पांच मास पर्यंत करवानो छे. ते एकासणाथी, आयंबीलथी अथवा उपवासथी करवामां आवे छे. शारीरीक शक्तिवाळा तो पाये उपवा. सीज करे छे. बार मास उपवास न करी शके ते पण कार्तिक शुदि ५ मे तो अवश्य उपवास करे छे. अने ते दिवसे बनता सुधी चार के आठ पहोरनो पौषध पण करे छे. ए तपना आराधन माटे संपूर्ण विधि करवाना इच्छके नीचे प्रमाणे विधि दरेक मासनी शुक्ल पंचमीए करवो. तप करवानो विधि. १ एकासगुं, आयबील के उपवास ययाशक्ति करवो

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