Book Title: Gyanpanchami
Author(s): Manek Bahen
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 12
________________ (२) २ बंने टंक प्रतिक्रमण कर. .. ३ त्रण काळ आठ स्तुति ने पांच शक्रस्तवादिवडे देव वांदवा.' ४ . बे टंक पडिलेहण करवी.२ ५. .त्रण काळ जिनपूजा करवी. तेमां प्रात:काळे वासक्षेपादिवडे, : मध्यान्हे अष्ट प्रकारी अने सायंकाळे धूप दिपादिडे करवी. ६ बे हजार जाप करवो. अर्थात् “ नमो नाणस्स" ए पदनी वीश नवकारवाळी एकाग्र चित्ते गणवी. ७ बने तो पौषध करवो अथवा दिवसनो धणो भाग ज्ञान ध्याना दिमां व्यतित करवो. ८ ज्ञान अने'ज्ञानीनी यथाशक्ति भक्ति करवी. ९ ज्ञाननो अभ्यास करवो अने तनी आशातना टाळवी. १० प्रभु पासे अथवा ज्ञान पासे पांच दीवटनो दीवो करवो. पांच स्वस्तिक करवां, यथाशक्ति फळ नैवेदादि पदार्थों पांच पांच चडाववा. . ११ पांच अथवा एकावन लोगस्सनो काउसग्ग करवो. ज्ञान पंचमीने दिवसे तो आ बघां वानां सविशेषे करवा. अर्थात् जिनेश्वरनी आंगी पूजादिवडे विशेष भक्ति करवी, फळ नैवेदादि विशेषे चढाववां, ज्ञान पंचमीना देव वांदवा,* तदंतर्गत एकावन ख १-२ देववंदनने पडिलेहणंनी विधि प्रसिद्ध होवाथी बताव. वामां आवेल नथी. . * ज्ञानपंचमीना देव अर्थ साथे आगळ आपवामां आव्या छे.

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