Book Title: Gyandhara
Author(s): Gunvant Barvalia
Publisher: Saurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
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हमारा- सामान्य जनजाव E एवं कर्म का सिद्धांत
_ - डॉ. मनीष वी. पंड्या (मनीषभाईने लायब्रेरी सायन्स में पीएच.डी. कीया है। फीलोसोफी एवं जैन धर्म के अभ्यासु है।)
कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर ए इंसान, जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान ।
सच ही कहा है, कर्म किए जाओ, फल की चिंता मत करो, फल अर्थात् परिणाम देना तो इश्वर के हाथ में ही है। कर्म ही हमारा धर्म है एवं हमें कर्म किए जाना है।
कर्म क्यां है?
सब से पहले तो यह जाने कि कर्म क्या है ? कर्म संस्कृत शब्द है। सरल भाषा में कर्म की व्याख्या करें तो कर्म अर्थात् क्रिया। हम जो भी काम अर्थात् क्रिया करते हैं वह कर्म है। सवेरे उठना, नहाना, चलना, खडे रहना, अपनी नौकरी या व्यवसाय करना, सोचना (एवं न सोचना भी), सोना, जागना, देखना, सूंघना, बोलना, साँस लेना, जीना-मरना एवं पंचेन्द्रियों से होनेवाले सभी काम कर्म हैं।
मनुष्य एक पल के लिए भी कर्म किए बिना नहीं रह ककता। यह उसकी प्रकृतिगत एवं स्वभावगत विवशता है। कर्म करेंगे तो फल अर्थात् परिणाम की प्राप्ति तो होगी ही। भले ही फल हमारे पक्ष में हो अथवा हमारी इच्छा के विरुद्ध। कर्म और फल का कार्यकारण संबंध वैश्विक रुप से अटल है। हमें आज नहीं तो कल, परंतु फल की प्राप्ति के लिए तैयार रहना होगा। वस्तुत: मनुष्य सुख की प्राप्ति के लिए ही कर्म करता है अथवा कर्म करने की
(જ્ઞાનધારા)
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(જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨)
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