Book Title: Guruvani
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी डा. नथमल टाटिया, निर्देशक जैन अगम ट्रांसलेशन प्रोजेक्ट गुरूवाणी - एक परिचय "गुरुवाणी” का अवलोकन का परम सुअवसर प्राप्त हुआ। परमपूज्य आचार्य श्री पद्मसागर सूरीश्ववरजी महाराज के 31 प्रवचनों के इस संग्रह में जैन धर्म के लोकहितकारी अनेक तत्त्व सुचारू रूप में लिपिबद्ध हुए हैं। विषय-प्रतिपादन शैली इतनी कुशल है कि साधारण से साधारण पाठक भी इसे सहजता से समझ लेता है। जैन धर्म की व्यापकता एवं गभीरता का मान पाठक को सहज ही इन प्रवचनों के अध्ययन से हो जाता है। जीवन-विज्ञान एवं जीवन-कला के कई मूल्यवान तत्त्व इन प्रवचनों के माध्यम से पाठकों के हदय में अंकित हो जाते हैं, जो उनकी जीवन शैली में मौलिक परिवर्तन लाने में प्रचर मात्रा में सक्षम हैं। __"गुरूवाणी" हमारे जीवन की कई समस्याओं का स्पष्ट रूप से समाधान देती है। संसार की दर्दनाक वास्तविकता के कई प्रसंग इन प्रवचनों में प्रांजल भाषा में लिपिबद्ध हैं, जो हमें जीवन-यापन की सही दिशा बताते हैं। भगवान महावीर के उपदेशों की मौलिक विशेषता को स्पष्ट करते हुए आचार्य श्री ने कहा है महावीर का वचन सापेक्ष है उसमें आपको संसार की बात भी आयेगी, सामाजिक दृष्टि से भी चिन्तन मिलेगा, आपके शारीरिक आरोग्य के बारे में भी जानकारी मिलेगी, आध्यात्मिक दृष्टि से परमात्मा को प्राप्त करने का उपाय भी उसके अन्दर आप को मिलेगा। परमपूज्य आचार्य श्री का ज्ञानभंडार अति विशाल हैं जीवन की सूक्ष्म गहराइयों को पहिचानने की उनकी शक्ति अपार है। वास्तविकता को अपने नग्न रूप में प्रदर्शित करने की उनमें अपार क्षमता है। पुराने आख्यानो, कथाओं एवं घटनाओं के माध्यम से आधुनिक जीवन की समस्याओं के समाधान के मार्ग उनके प्रवचन प्रशस्त करते हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि प्राचीन जैनाचार्यों ने अपनी गंभीर सूत्रात्मक वाणी द्वारा तत्कालीन प्रबुद्ध वर्ग के समक्ष जिस समन्वयात्मक अहिंसा एवं अनेकांत सिद्धांत को रखा था, आचार्य श्री पद्मसागर सूरीश्वर जी महाराज ने आधुनिक जगत् के हितार्थ आधुनिक भाषा में उसे ही पद्धति से व्यावहारिक रूप प्रदान किया और गणिवर्य श्री देवेन्द्रसागरजी ने उसी सहजता से आचार्यश्री के प्रवचनों को आवश्यक सम्पादन द्वारा पुस्तक का आकार दिया है। आचार्यश्री की ओजस्वी वाणी का प्रभाव लिखित पुस्तक के रूप में उतना ही निखरकर आया है, इसके लिए गणिवर्य देवेन्द्रसागरजी साधुवाद के पात्र हैं. नथमल टाटिया 6-3-96 - - For Private And Personal Use Only

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