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में खड़े हो जाना / मैं तपस्वियों में तप हूं / प्रदर्शनकारी तपश्चर्या ः अहंकार का खेल / राबर्ट रिप्ले की तिकड़में प्रसिद्ध होने के लिए / सम्यक तप—द्वंद्वों में अकंप / तप से क्रिस्टलाइजेशन फलित / तप-जो आत्मवान बनाए / तपश्चर्या आसान है; तप कठिन है / कृष्ण अनेक-अनेक मार्गों की खबर दे रहे हैं / बार-बार कहना-पता नहीं अर्जुन कब सुन ले / खुलेपन के क्षण / बायजीद की शिक्षा का अनूठा ढंगः शिष्यों को नींद से उठाकर निर्देश देना / कृष्ण की कोशिशें।
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प्रकृति और परमात्मा ... 377
प्रकृति परमात्मा में है लेकिन परमात्मा प्रकृति में नहीं है / साधक के लिए यह सूत्र है / प्रकृति के पार साक्षी / शरीर में, प्रकृति में परमात्मा है तो खोज की त्वरा न रहे / पहले खोजो परमात्मा को / हम सब खोजते हैं—प्रभु को छोड़कर / परमात्मा की आग में सब पाप का जल जाना / सात्विकता प्रभुरहित हो तो व्यर्थ / नीति है बाह्य परिवर्तन / धर्म है—अंतस क्रांति / परमात्मा से संबंध बने, तो क्रांति आप ही आप / बुरा असंभव हो जाता है | धर्म अवतरण है-पूर्ण से खंड की ओर / धर्म शुरू करता है विराट से-विज्ञान शुरू करता है अणु से / धर्म है समर्पण, और विज्ञान है-संघर्ष / सत्व, रज, तम तीनों ही मोहित करते हैं / अर्जुन सत्व से सम्मोहित हो रहा है / दूसरों का कल्याण करने के पहले-अपना तो कर लो / शुभ, अशुभ दोनों से मक्त होने पर-ऊर्ध्वगमन / लोहे की जंजीरें सोने की जंजीरें / साध और संत की भिन्नता / संयम और सहजता / व्यक्ति, प्रकृति और परमात्मा / केवल परमात्मा के सहारे प्रकृति से ऊपर उठना संभव / परमात्मा को देखते ही प्रकृति शांत हो जाती है / बड़ी शक्ति है प्रकृति की / शरीर, मन, बुद्धि-सब प्रकृति से निर्मित / भजन भाव की दशा है / सब में प्रभु-स्मरण आए / जहां स्मृति-वहां चेतना का बहाव / शब्द नहीं—भाव / मां
और बच्चे के बीच बहती-निःशब्द भाव की धारा / सतत भाव से एक धारा का, एक सेतु का निर्माण / प्रकृति परमात्मा की योगमाया है / परमात्मा का स्मरण सम्मोहन भंजक है / किसी भी बहाने प्रभु-स्मरण कर लो / मेरे नाम के आगे भगवान लगाना-एक बहाना / रजनीश भूल जाए–भगवान याद रहे / सदा मैं आपके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता रहा / प्रभु-स्मरण सीखें / कीर्तनः प्रभु-स्मरण।
जीवन अवसर है ... 393
मनुष्य के दो परम विभाजन-प्रभु-उन्मुख और प्रभु-विमुख / प्रभु को न भजने वाला मूढ़ है / मूढ़-स्वयं को हानि पहुंचाने वाला / परमात्मा के बिना आदमी दरिद्र ही रहेगा / परमात्मा से लड़ना अर्थात स्वयं से लड़ना / भजन है सेतु-आदमी और परमात्मा के बीच / सजन-वृत्ति-विनाश-वृत्ति / प्रभु-विस्मरण-परम दुर्भाग्य / प्रभु के अभाव में सब उपद्रव इकट्टे / मांग है, तो प्रार्थना संभव नहीं / प्रार्थना है–धन्यवाद, अहोभाव / मांगने की
आदत / जीवन व्यर्थ की बातों में खोना / एकमात्र बुद्धिमत्ता-शाश्वत को खोज लेना / मृत्यु-बोध द्वार है-अमृत-बोध का / पाप की आग से गुजरकर संतत्व का जन्म / सम्मोहित हुए मूढ़ता की पुनरावृत्ति करते चले जाना / अनुभव के ऊपर आशा की विजय / अनुभव सम्मोहन तोड़ सकता है / प्रेम में स्वयं को पूरा का पूरा प्रगट कर देना / छिपाव दूरी बनाएगा / ईसाइयत का कीमती दान-पाप की स्वीकारोक्ति-विधि / मुखौटे और धोखे / कभी-कभी असावधानी में मुखौटे का उखड़ जाना / छिपाव दूजापन है / अछिपाव एकीभाव है / अप्रौढ़ चित्त की धर्म में गति नहीं / सांसारिक लोभ / सम्राट श्रेणिक! ध्यान खरीदा नहीं जा सकता / लोभवश धर्म में उत्सुकता-बचकानी / संसार की व्यर्थता-धर्म की पूर्व-भूमिका / भय और लोभ-एक ही सिक्के के दो पहलू / वृद्धावस्था में धर्म में रुचि-मृत्यु-भय के कारण / अभी तो तू जवान है! / मुर्दे के पास राम-राम करना / क्या प्रभु-कृपा सशर्त बंटती है? / प्रभु तो सदा बरस रहा है / हम उलटे घड़े हैं / जबर्दस्ती आंखें नहीं खोली जा सकती / बरसता समान है—मिलता कम-ज्यादा है / लोभ और