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सम्मति
डॉ० कमलचन्द सोगणी की चार चयनिकाएँ - आचारांग - चयनिका, दशवैकालिक- चयनिका, समणसुत्तं चयनिका तथा अष्टपाहुड - चयनिका प्रकाशित हो चुकी हैं। ये चारों चयनिकायें जैन परम्परा से जुड़ी हैं। गीता - चयनिका का संबंध वैदिक परम्परा से है । इस दृष्टि से इस चयनिका का अपना महत्त्व है, क्योंकि यह उस उदार तथा असाम्प्रदायिक दृष्टि का प्रतिनिधित्व करती है जो सत्य को किसी सम्प्रदाय विशेष की थाती न मानकर उसको सभी जगह बिखरा हुआ देखती है। आज सम्प्रदाय- निरपेक्षता का युग है । डॉ० सोगाणी ने निष्ठापूर्वक गीता का आलोडन कर उसमें निहित सत्य को देखने का सफल प्रयास किया हैं ।
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डॉ० सोगाणी पाठक को केवल अनुवाद तथा अपनी व्याख्या के ही आधार पर अवलम्बित न रखकर व्याकरणिक विश्लेषण के माध्यम से मूल ग्रन्थ तक ले जाना चाहते हैं । कोई भी पाठक चाहे तो थोड़े से परिश्रम से स्वयं इस बात की जाँच कर सकता है कि उनका अनुवाद तथा विश्लेषण मूल ग्रन्थ के आशायानुकूल है या नहीं । धर्मग्रन्थों के विश्लेषण में यह मूलानुगामिता अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इन धर्मग्रन्थों की रचना हजारों वर्ष पूर्व हुई और यह सदा संभव है कि लेखक आज की मान्यताओं को इन ग्रन्थों पर इस प्रकार थोप दे कि मूल ग्रन्थ के आशय के विपरीत बात उनके नाम पर प्रचलित हो जाए ।
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