Book Title: Geeta Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
(उमायनः) ] शक्यः (शक् +शक्य) विधिक 1/1. अवाप्तुम् (अव
आप् --अवाप्तुम्) हेकृ. उपायतः (अ)= प्रयत्न से 92. मनुष्याणां सहस्रषु [(मनुष्याणाम्) + (सहस्रेषु)] मनुष्याणाम् । __(मनुष्य) 6/3. सहस्रेषु (सहस्र) 7/3. कश्चिद्यतति [(कश्चित्) +
(यतति)] कश्चित् [(कः +चित्] कःचित् (किम् + चित्!) 1/1सवि. यतति (यत्) व 31 अक. सिद्धये (सिद्धि) 4/1 यततामपि [ (यतनाम्) + (अपि)] यतताम् (यत्-+यतत्) 6/3. अपि (अ) = भी. सिद्धानां कश्चिन्नां वेत्ति [(सिद्धानाम्) + (कश्चित्) + (माम्) +वित्ति)] सिदानाम् (सिद्ध) 6/3 वि. कश्चित् [(कः +चित्)] कःचित् (किम् :-चित्) । 1 सवि. माम् (अस्मद्) 2/। स. वेत्ति
(विद्) व 3/1 सक तत्त्वतः (अ) = वस्तुतः 93. त्रिभिर्गुणमयैर्भावरेभिः [(त्रिभिः) + (गुणमयः)+(भावैः) + (एभिः)]
त्रिभिः (त्रि) 3/3 वि. गुणमयः (गुणमय) 3/3 वि. भावः (भाव) 3 /3. एभिः (एतत्) 3/3 सवि. सर्वमिदं जगत् [ (सर्वम्) + (इदम्) + (जगत्)] सर्वम् (सर्व)1/1 सवि. इदम् (इदम्) 1/1 सवि. जगत् (जगत्) 1/1. मोहितं नाभिजानाति [(मोहितम्) + (न) + (अभिजानाति)]मोहितम् (मुह,+मोहय् --मोहित) भूक /1. न (अ)= नहीं. अभिजानाति (अभि-ज्ञा) व 3/1 सक. मामेभ्यः [(माम्) + (एभ्यः)] माम् (अस्मद्) 2/1 स. एभ्यः (एतत्) 5/3 स. परमव्ययम् [(परम्) + (अव्ययम्)] परम् (पर) 2/1 वि. अव्ययम् (अव्यय) 2/1 वि.
1. 'चित्' अनिश्चित प्रर्य को प्रकट करने के लिए जोड़ा जाता है। 2. किसी समुदाय में से एक को छांटने में जिसमें से छांटा जाए उसमें षष्ठी या
सप्तमी होती है।
98
]
गीता
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178