Book Title: Geeta Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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शम) 1: 1. स्पृहा (स्पृहा) 1/1 रजस्येतानि [(रजसि) + (एतानि)] रजसि (रजस्) 7/1. एतानि (एतत्) 1/3 सवि. जायन्ते (जन्) व 3/3 अक विवृद्ध (वि-वृष्--विवृद्ध) भूकृ 7/1 भरतर्षभ [ (भरत) + (ऋषभ)] [(भरत)-(ऋषभ) 8/1]
153. अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च [(अप्रकाशः) + (अप्रवृत्तिः) + (च)] अप्रकाशः
(अप्रकाश) 1/1. अप्रवृत्तिः (अप्रवृत्ति) 1/1. च (अ)=ौर. प्रमादो मोह एव च [(प्रमादः) + (मोहः)+ (एव च)] प्रमादः (प्रमाद) 1/1. मोहः (मोह) 1/1. एव च (अ) तथा. तमस्येतानि [(तमसि)+ (एतानि)] तमसि (तमस्)7/1. एतानि (एतत्) 1/3 सवि. जायन्ते (जन्) व 3/3 अक विवृहे (वि-वृध्-+वि-वृद्ध) भूक 7/1 कुरुनन्दन (कुरुनन्दन) 8/1.
____154. नान्यं गुणेभ्यः [(न) + (अन्यम्)+ (गुणेभ्यः)] न (अ)= नहीं अन्यम्।
(अन्य) 2/1 सवि. गुरणेभ्यः (गुण) 5/3. कर्तारं यदा [(करिम) + (यदा)] कर्तारम् (कर्तृ) 2/I वि. यदा (अ)=जब. द्रष्टानुपश्यति [(द्रष्टा)+ (अनुपश्यति)] द्रष्टा (द्रष्ट्र) 1/1. अनुपश्यति (अनु-श्) व 3/1 सकः गुणेभ्यश्च [(गुणेभ्यः)+ (च)] गुणेभ्यः (गुण) 5/3. च (प्र) =ौर. परं वेत्ति [(परम्) + (वेत्ति)] परम् (पर)2/1 वि.
1. भिन्न अथवा प्रतिरिक्त अर्थ बोधक 'अन्य, 'पर' के योग में पंचमी विभक्ति होती है।
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