Book Title: Geeta Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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निस्सन्देह. मृत्यु श्रुतिपरायणाः [(मृत्युम्) + (श्रुतिपरायणाः)] मृत्युम
(मृत्यु) 2/1. श्रुतिपरायणाः [(श्रुति)-(परायण) 1/3 वि] 150. सत्त्वं रजस्तम इति [सत्वम्) + (रजः) + (तमः) + (इति)] सत्त्वम्
(सत्त्व) 1/1. रजः (रजस्) 1/1 तमः (तमस्) 1/1. इति (प्र) = इस प्रकार. गुणाः (गुण) 1/3. प्रकृतिसंभवाः [(प्रकृति)-(संभव) 1/3 वि] निबध्नन्ति (निबन्ध) व 3/3 सक महाबाहो (महाबाहु) 8/1 देहे (देहे) 7/1 देहिनमव्ययम् [(देहिनम्)+ (अव्ययम्)] देहिनम् (देहिन्) 2/1. अव्ययम् (अव्यय) 2/1.. .
151. सर्वद्वारेषु [(सर्व) वि-(द्वार) 7/3] देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते
[(देहे) + (अस्मिन्) + (प्रकाशः) + (उपजायते)] देहे (देहे) 7/1. अस्मिन् (इदम्) 7/1 सवि प्रकाशः (प्रकाश) 1/1. उपजायते (उप
-जन्) व 3/1 अक. ज्ञानं यदा तदा [(ज्ञानम्) + (यदातदा)] ज्ञानम् (ज्ञान)1/1. यदा तदा (अ)=जब कभी विद्याद्विवलं सत्त्वमित्युत [(विद्याद) + (विवृतम्) + (सत्त्वम्) + (इति) + (उत)] विद्यात् (विद्) विधि 3/1 सक. विवृद्धम् (वि-वृष्-विवृद्ध) भूक 1/1.
सत्त्वम् (सत्त्व) 1/1. इति (म)= इस तरह. उत (अ) =और. 152. लोभः (लोभ) 1/1. प्रवृत्तिरारम्भः [(प्रवृत्तिः) + (प्रारम्भः)]
प्रवृत्तिः (प्रवृत्ति) 1/1. प्रारम्भः (प्रारम्भ) 1/1. कर्मणामशमः [(कर्मणाम्) + (प्रक्षमः)] कर्मणाम् (कर्मन्) 6/3. प्रशमः (प्र
1. परायण (वि) : समास के अन्त में प्रयुक्त होने पर इसका अर्थ होता है माश्रित मावि
(पाप्टे, सं. हि. कोश) 2. समास के अन्त में अर्थ होता है : उत्पन्न ।
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गीता
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