Book Title: Geeta Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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तेषां के [(च) + (अपि) + (अक्षरम्)+ (अव्यक्तम्) + (तेषाम्) + (के)] च (अ)=और. अपि (अ)=केवल. अक्षरम् (अक्षर)2/1 वि. अव्यक्तम् 2/1 वि. तेषाम् (तत्) 6/3 स. के (किम्) 1/3 सवि. योगवित्तमाः [(योग)- (विद्+तम= वित्तम) 1/3 वि]
. 128. मय्यावश्य [(मयि) + (आवेश्य)] मयि (प्रस्मद्) 7/1. आवेश्य
(प्रा-विश्+आवेशय्-+मावेश्य) पूकृ. मनो ये . [ (मनः) + (ये)] मनः (मनस्) 2/1. ये (यत्) 1/3 सवि. मां नित्ययुक्ता उपासते [(माम्) + (नित्य युक्ताः ) + (उफासते)] माम् (अस्मद्) 2/1 स. नित्ययुक्ताः [ (नित्य) वि-(युज्+युक्त) भूक 1/3]. उपासते (उपप्रास्) व 3/3 सक. श्रद्धया (श्रद्धा) 3/1 परयोपेतास्ते [ (परया) + (उपेता.)+(ते)] परया (पर+परा) 3/1 वि. उपेताः (उपेत). 1/3 वि. ते (तत्) 1/3 सवि. मे (अस्मद्) 6/1 स. युक्ततमा मताः [(युक्ततमाः) + (मताः)] युक्ततमाः (युक्ततमा) 1/3 वि. मताः (मन्+मत) भूक 1/3..
29. ये (यत्) 1/3 सवि त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते [(तु)+ (अक्षरम्)
+ (अनिर्देश्यम्) + (अव्यक्तम्) + (पर्युपासते)] तु (अ)= और. अक्षरम् (अक्षर) 2/1 वि. अनिर्देश्यम् (अनिर्देश्य)2/1 वि. अव्यक्तम् (अव्यक्त) 2/1 वि. पर्युपासते (पर्युप-प्रास्) व 3/3 सक. सर्वत्रगमचिन्त्यं च [(सर्वत्रगम्)+ (अचिन्त्यम्) + (च)] सर्वत्रगम् (सर्वत्रग)
1. समुदाय में से एक के छांटने में, जिसमें से छांटा जाए उसमें षष्ठी या सप्तमी
होती है।
112 ]
गीता ]
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